Monday 12 March 2012


उत्तराखंड में जनमत के साथ धोखा

विद्या भूषण रावत

उत्तराखंड के चुनावो में लोग इस बार एक बदलाव की रह देख रहे थे. मुख्यामंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी को दिल्ली के मीडिया ने  ईमानदारी का तगमा दे दिया थे और खंडूरी है जरुरी का नारा देकर भाजपा को दोबारा सत्ता में लेन का प्रयास किया. लेकिन उत्तराखंड की कोटद्वार  सीट पर लगभग पांच हज़ार वोटो से हार के बाद खंडूरी का सपना चकनाचूर हो गया. उनको आगे बढ़ने वाली अन्ना की टीम भी पिट गयी और लाख प्रोपेगंडा के बाद भी कोई पार्टी बहुमत नहीं ले पायी.

उत्तरखंड का दुर्भाग्य है के अलग राज्य का आन्दोलन दलितों और पिच्चादी जातियों के खिलाफ जोर पकड़ा और जब उत्तर-प्रदेश में मंडल के लहर चल रही थी तो उत्तराखंड के सवर्ण खुलकर सपा और बसपा को गली देते फिर रहे थे. वो मंडल रिपोर्ट के खिलाफ थे और उसी का नतीजा है के उत्तराखंड के पृथक राज्य का आन्दोलन आग की तरह खड़ा हो गया. पृथक राज्य बनाने पर भाजपा ने हरयाणा के एक ब्रह्मिन नित्यानंद स्वामी को पहला मुख्यमंत्री बनाया और फिर तो उसके बाद से अभी तक प्रदेश के बागडोर कांग्रेस और भाजपा के ब्रह्मण नेताओं के पास ही रही है. साफ़ जाहिर है के कांग्रेस पार्टी ने उत्तराखंड के लोगो का अपमान किया क्योंकि इस प्रकार सम दम दंड भेद से अगर मुख्यमंत्री बनाये गए तो फिर उस पार्टी का कोई भला नहीं हो सकता.

कांग्रेस को उत्तर-प्रदेश रीता बहुगुणा और प्रमोद तिवारी के अतिरिक्त कोई नज़र नहीं आया और लाख कोशिश के बावजूद राहुल गाँधी का २०१४ का सपना अखिलेश के साइकिल के सामने फ्लॉप हो गया. आज देश भर में दलित और अन्य जातियों में अपने समाज के प्रति एक नयी जागरूकता है जिसको ब्रह्मिन जातिवाद कहते हैं. हालाँकि उनको इस बात से कोई परेशानी नहीं है के उत्तराखंड राज्य बनाने के बाद से ही किसी भी दल ने गैर ब्रह्मिन को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया. क्या ये सभे ब्रह्मिन मुख्यमंत्री सर्वसम्मति से बने हैं. क्या कोई गैर ब्रह्मिन व्यक्ति इतनी कबिलिअत नहीं रखता के वो राज्य का मुख्यमंत्री बन सके. 

मायावती, मुलायम, लालू, करूणानिधि, नितीश कुमार इत्यादि सभी ने साबित किया है वो ब्रह्मिनो से ज्यादा अच्छे से राज चल सकते हैं. लोकतंत्र में जनता के भूमिका महत्त्वपूर्ण है और इसलिए जन प्रतिनिधियों को चुना जाता है और उनकी राय मांगी जाती है. उत्तराखंड में ऐसे लगता है के बहुत ही चतुराई से खेल खेलकर सोनियाजी के हाथो में सत्ता सौंप दे. साफ़ है के कांग्रेस ब्रह्मिन्वादी मीडिया की राय की चिंता करती है और उत्तराखंड के ब्रह्मंराज के जरिये दुसरे प्रदेशों के ब्राह्मणों को रिझाएगी लेकिन उससे उत्तर प्रदेश के समीकरण बदल जाए ऐसे लगता नहीं है. आज इस ब्राह्मणवाद का शिकार सभी प्रदेश अपने नए नेतृत्व ढूंढ रहे हैं.

त्रासदी यह है के बहुगुणा राज्य में ऊपर से थोपे गए हैं. अपने फौजी चचरे भाई की तरह वो हाई कोर्ट के जज रहे और उनका ट्रैक रिकॉर्ड कोई बहुत अच्चा नहीं रहा है. कांग्रेस ने देश के हर एक संस्था को धराशाई किया है. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज लोग कोई सरकारी पद नहीं ले सकता है लेकिन कांग्रेस ने उसको नहीं छोड़ा. चुनाव आयोग एक सम्वाधानिक संस्था लेकिन कांग्रेस ने गिल को भी मंत्री बनाकर बता दिया के वोह इन सभी संस्थाओ का राजनीतिकरण करेगी. आज उत्तराखंड में बहुत से नेता है जो जमीन से जुड़े हैं और जिनकी मेहनत से कांग्रेस सर्कार बनाने के स्थिति में आयी लेकिन उन सबको आपस में भिड़ा कर हाई कमान ने बहुगुणा को गद्दी सौंप दी. 

उत्तराखंड के ब्राह्मणों और राजपूतो में कभी नहीं बनी हालाँकि दलितों के विरोध में दोनों साथ साथ हैं और ब्राह्मणवादी परम्परो को निभाने और मानाने में दोनों सुपर हैं लेकिन अंदरूनी तौर पर दोनों में भयंकर कलह है. यह भी सत्य है के उत्तराखंड के दलितों के संघर्ष में यह दोनों जातियां कभी सामने नहीं आये लेकिन शिल्पकार जाति अब कोशिश कर रही थी के नए समीकरण बने. कांग्रेस अगर चाहती तो मुख्यमंत्री का पद एक दलित को सौंप कर प्रदेश के जनता में एक सन्देश दे सकती थी लेकिन सामाजिक परिवर्तन कांग्रेस का कभी मुद्दा नहीं रहा. पार्टी अभी भी ब्राह्मणों के सहारे देश के वैतरणी पर करना चाहती है. समय आते अगर कांग्रेस चेती नहीं तो उसका बेडा गरक हो जाएगा. हिंदुत्व के भाजपा का ब्राह्मणवाद और कांग्रेस के समाजवादी ब्राह्मणवाद में कोई फर्क नहीं है और यह जनता को बेवकूफ बनाकर नए तरीके निकलने में माहिर हैं.

कांग्रेस के इस धोखाधड़ी से भाजपाई ब्राह्मणों के हाथ सत्ता से कुच्छ नहीं होने वाला. उत्तराखंड में अब जातिगत प्रश्न खुलकर सामने आना चाहिए और गैर ब्रह्मिन जातियों को अपनी अपनी पार्टियों में एक साफ़ लाइन लेनी पड़ेगी के उत्तराखंड की जनता के खिलाफ इस ब्राह्मणवादी षड़यंत्र को वो चुनौती देती हैं और इसके खिलाफ लामबंद होंगे. समय के पुकार है के उत्तराखंड से ब्राह्मणवाद के खात्मे के लिए सभी उत्पीडित जातियों को एक होना जरुरी है ताकि मनुवादी भाजपा और कांग्रेस का सफाया हो सके.