Lokayaat is a materialistic philosophy that places most of its emphasis on the here and now and life as we perceive it as we live through it. The Carvaka system only accepts perceived knowledge to be true and therefore dismisses the concept of an afterlife. It does not believe in a cult system where devotees look for a master. Our discussions must follow that route which go towards liberation and restore human dignity.
Sunday 21 July 2013
Lokaayat: तोगड़िया के प्रशंशक मेडिकल एथिक्स पर कभी नहीं चल स...
Lokaayat: तोगड़िया के प्रशंशक मेडिकल एथिक्स पर कभी नहीं चल स...: विद्या भूषण रावत गत शनिवार को देश के नामी गिरामी मेडिकल कालेज में मेडिकल एथिक्स पर एक लेक्चर के लिए आमंत्रित किया गया था. आय...
तोगड़िया के प्रशंशक मेडिकल एथिक्स पर कभी नहीं चल सकते
विद्या भूषण रावत
गत शनिवार को देश के नामी गिरामी मेडिकल कालेज में मेडिकल एथिक्स पर एक लेक्चर के लिए आमंत्रित किया गया था. आयोजको ने मुझसे भी पांच मिनट बोलने के लिए कहा ताकि मैं अनुभव उनके साथ शेयर कर सकूं और हालेंड से आये हमारे अतिथि को भी आरंभिक जानकारी हो जाए.
मैंने बोलना शुरू किया और कहाँ पे हमारे डॉक्टर और हमारे अस्पताल चिकित्सा नैतिकता का उल्लंघन कर है. आखिर उत्तर प्रदेश में सफाई कर्मी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ऑपरेशन कर और हमने कई बार समाचारों में देखा और पढ़ा जिसमे निर्दोष बच्चों की मौतें हुयी हैं . दिल्ली में सफाई कर्मियों की होती है और पुलिस उन्हें लावारिश दिखाकर २४ घंटो की बाद परिवार के लोगो को सौंपती है. हाँ, हमारे देश में अभी भी डाक्टरा मरीजो को हाथ नहीं लगते क्योंकि छुआछूत का डर है. दिल्ल्ली में बड़े अस्पतालों में अभी भी आई सी यू में छोटे मंदिर हैं जहाँ लोग नारियल फोड़ते हैं और पैसे चढाते हैं . क्या यह मेडिकल एथिक्स के विरुद्ध नहीं है ? आज भी दिल्ली में डाक्टर मरीजो को उनकी बीमारी के बारे में ठीक से नहीं बताते और पैसे न होने पर इलाज़ करने से मना कर देते हैं
आज दिल्ली में मानसिक रोगों का इल्लाज़ करने वाले डाक्टर गायत्री मंत्र सुनने की सलाह देते है परन्तु सवाल यह है के जो लोग हिन्दू नहीं है उनके लिए क्या दवा होगी ? आप सभी लोग भविष्य के डाक्टर हैं इसलिए मरीजो का इलाज़ भेदभाव और पूर्वाग्रहों के बिना होना चहिये. आप लोगो ने प्रवीन तोगड़िया का नाम तो सूना होगा . लोग कहते हैं वो भी एक डॉक्टर थे …
जैसे ही मैंने प्रवीण तोगड़िया का नाम लिया, सबसे पीछे बैठे एक प्रोफेसर खड़े होगये और मुझे भाषण बंद करने को कहा. वोह स्टेज पर आ गए और मेरे हाथ से माइक छीन लिया और मुझे अपना वाक्य भी पूरा नहीं करने दिया । खैर मुझे संसथान की पॉलिटिक्स का ज्यादा पता नहीं था इसलिए मैं चुपचाप बैठ गया. प्रोफेसर साहेब ने मेरी आलोचना की और अपने दस मिनट बाद हालेंड के अतिथि ने भाषण दिया और अपनी बात रखी और मैंने जो बात कही तो उसको उन्होंने अपने वक्तव्य में रखा .
बाद में बहुत से टीचर्स ने मेरी बात को सही बताया और माना के मेरे वक्तव्य में कोई ऐसी बात नहीं थी जो ऑब्जेक्शनएबल थी और यह भी बताया की उन महोदय का संघ प्रेम जगजाहिर है. बस केवल इतनी बात के उन महाशय को आयोजक कुछ कह नहीं पाये. उन्होंने हमारा अपमान तो किया लेकिन कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलने के लिए मैंने तो चुप रहा जो ठीक भी था, लेकिन उन महाशय को मैं इतना ही कहना चाहता हूँ के विचारों को रोक नहीं जा सकता और जो तोगड़िया से प्रभावित हैं वोह कभी अच्चे डाक्टर हो ही नहीं सकते।
आज हमारे संस्थानों में ऐसे जातिवादी तत्त्व बैठे हैं जो जासूसी करते हैं के कही तर्कवादी मानववादी लोग नै पीढ़ी में बदलाव ना ला दे इसलिए ऐसे लोगो से डाक्टरी की व्यवसाय को सबसे बड़ा खतरा है. आज हमें ऐसे डाक्टर चाहिए जो मानवीय सोच रखते हैं और देश, जाती, धर्म और अन्य पूर्वाग्रहों को पार कर चुके हों. तोगड़िया और माया कोदनानी के प्रशंशक तो सही अर्थो में मेडिकल एथिक्स को मान ही नहीं सकते वो तो मानवता का खून ही करेंगे
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