Friday 1 February 2013

Tracing History at Chaurichaura


इतिहास  के पन्नो से गायब संघर्ष का इतिहास 

विद्या भूषण रावत 

चौरी चौरा  को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में मील का पत्थर माना जाता है। 4 फरवरी 1922 को बद्री तिवारी नामक जमीदारो के दलाल ने पोलिस को  गाँव के किसान मजदूरों के खिलाफ भड़काकर एक खुनी क्रांति के शक्ल देदी। वापस लौट रहे सत्याग्रहियों पर  पुलिस की  गोलीबरी में 26 लोगो की मौत हो गयी। इलाके में तनाव था और पुलिस लोगो पर लगातार अत्याचार किये जा रही थी। जब पुलिस का असलाह ख़त्म हो गया तो वे अपने बैरक में लौट गए। गुस्स्साए लोगो को इसकी जानकारी थी और उन्होंने थाने को घेर लिया और उस में आग लगा दी फलस्वरूप 21 पुलिसवाले जिन्दा जल कर मारे गए। गांधीजी इस घटना से इतना विचलित हुए के उन्होंने असहयोग आन्दोलन को तुरंत खत्म करने की घोषणा कर दी . देश भर में तेज होते एक आन्दोलन को गाँधी के एक 'हथियार' ने समाप्त कर दिया .

इस घटना  में शामिल 228 लोगो पर मुकदमा चला जिसमे 6 तो पुलिस के हिरासत में ही मरे गए। 8 महीने के ट्रायल के बाद 172 को सजाये मौत दी गयी। बाद में उच्च न्यायलय ने 110 लोगो को आजीवन करावाश सुनाया जबकि 19 लोगो को सजाये मौत दी गइ  और अंततः 23 अप्रेल  1923 को इन्हें सूली पे लटका दिया गया। चौरी चौरा में उनकी स्मृति में एक स्मारक  भी है लेकिन साथ में बने पुस्तकालय की हालत ख़राब है। बेहतरीन पेंटिंग्स ख़राब हो चुकी है और पुस्कालय के कर्मियों को 1990 के बाद से वेतन का भुगतान भी नहीं किया गया। शहीद स्मारक में उन सभी 19 लोगो के नाम हैं जिन्हें फांसी की सजा मिली। सरकार के पास उनका सम्मान करने का पैसा नहीं था इसलिए 1972 में स्थानीय लोगो ने ही उनका स्मारक बनाया .

सामने ही चौरी चौरा पुलिस का थाना है जिसमे  एक शहीद स्मारक है जिसमे 21 पुलिस   मारे गए। अब समझ नहीं  एक स्थान पर दो लोग  शहीद हो   हैं।एक लोग वे जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते मारे गए और दुसरे वे जिन्होंने जमींदारो के कहने पे किसान मजदूर दलितों पे गोलियां चलायी। लेकिन मजाल क्या के किसी ने पुलिस की भूमिका की जाँच की मांग की।

वर्षो तक हमने ये सुना की गांधीजी चौरी चौरा की घटना से बहुत विचलित हो गए और आन्दोलन खत्म हो गया। सवाल यह की उन पुलिस वालो की हत्या के लिए गाँधी विचलित क्यों हुए जिन्होंने निहत्थी  लोगो को भून दिया। 19 लोगो को फंसी हुयी और गाँधी उन्हें नहीं बचा पाए क्यों ? आखिर लोगो ने पुलिश पर हमला केवल अपनी जान बचने के लिए और एक भयावह गुस्से के कारण। आइये कुच्छ तथ्यों पे प्रकाश डालें।

जिन 19 लोगो को फांसी की सजा हुयी उनमे मुख्यतः कहार, चमार, यादव, सुनार, जुलाहा और अन्य गरीब किसान जातियां थी। 2 ब्राह्मण सत्याग्रहियों को भी मौत की  सजा हुयी। यह सभी लोग अपने लगान, खेती के सवालो और ज़मींदारो की विरुध्ध आन्दोलन छेड़े हुए थे। पुलिस वालो में अधिकांश हिन्दू ऊँची जातियों के लोग  थी और संभवतः दलित और पिछडो के प्रति उनका रवैय्या बहुत ही घृणित था। कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में दलित, पिच्च्दो, मुसलमानों  की बड़ी भूमिका थी लेकिन उनका नेतृत्व मुख्यतः ब्राह्मणों और एक दो अन्य सवर्ण जातियों के हाथ में था। चौरी चौरा के सत्याग्रही दलित पिच्च्दी मुस्लिम जातियों के लोग थे और उनके मौत के सौदागर सवर्ण थे जो ब्रिटिश राज में सत्ता का सुख भोग रहे थे। उन्होंने सामाजिक सत्ता को बचाए रखने के लिए ही राज्य सत्ता के साथ समझौता किया। इसलिए बड़ी जातियों के इतने सारे लोगो की हत्या के बाद यदि गाँधी असहयोग आन्दोलन स्थगित नहीं करते तो भारत में सामाजिक विद्रोह के स्वर और मज़बूत होते लेकिन गाँधी बहुत होशियार थे और उन्होंने इस बात को भांप लिया था की असहयोग आन्दोलन ऊँची जातियों के विरुद्ध और ब्रिटिश राज के विरुद्ध एक ताकतवर आन्दोलन हो जाएगा इसलिए यह आन्दोलन हिंसा की बहनेवाजी के कारण  बंद कर दिया गया। क्या किसी भी राजनैतिक आन्दोलन को अपना लक्ष्य प्राप्त करने लिए हिंसा की जरुरत नहीं पड़ती ? 

पुलिश वालो की हत्या पर गाँधी का विचलित होना यह दर्शाता है के कांग्रेस का सवर्ण नेतृत्व अपने लोगो की हत्या को ही हत्या मानता था। इतिहासकारों ने तो और भी दोख किया जब चौरी चौरा के दलित बहुजन संघर्ष को इतिहास के पन्नो से गायब  कर दिया और इसको एक हिंसक आन्दोलन के रूप में प्रस्तुत कर गाँधी के महात्म्य को इतना बड़ा बना दिया की हम लोग ये बात भूल गए के जो लोग देश के लिए फांसी पे गए उनके परिवारों का क्या होगा। आज तक किसी ने उनकेबारे  में सोचा या नहीं। और चौरी चौरा की हालत के बाद ये लगता है के किस तरह से दलित आन्दोलनकारियों के इतिहास को छुपा दिया गया। इसमें वो लोग भी दोषी हैं जो यह मानते हैं के भारत की आज़ादी के आन्दोलन से उनका लेना देना नहीं। इससे बड़ा झूठ कुच्छ नहीं हो सकता। दलितों, पिछड़े और मुसलमानों की भारतीय स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन में बहुत अग्रणी भूमिका रही है और उसे  ढंग से बाहर निकालने  और उस पर  काम  करने की जरुरतहै।

चौरी चौरा जैसे आन्दोलन बहुत स्थानों पे हुए और दलितों पिछडो और मुसलमानों ने भी देश के लिए अपना खून बहाया और शायद उनसे ज्यादा जो आज सबसे बड़ा देशभक्त होने का दावा करते हैं।इतिहास की दोबारा से व्याख्या करने की आवश्यकता है और उसके लिए हमें उन साभी जगहों पे जाना होगा जहाँ बड़े घटनाक्रम हुए ताकि छुपाये गए सच को निकल जा सके और लोगो को उनके इतिहास की जानकारी हो और यह भी की अपने अधिकारों को जानना कितना आवश्यक है क्योंकि इसके 
अभाव में हम हमेशा 'कूटनीति' का शिकार होते रहेंगे .