Saturday 19 October 2013

देश के विकास के लिए चमत्कारों का भंडाफोड़ जरुरी


विद्या भूषण रावत 

उन्नाव जिले का डोंदिया खेड़ा गाँव पिछले एक हफ्ते में  देश भर में प्रसिद्द  हो गया. बंगाली बाबा शोभन सरकार ने सपना देखा और भारत सरकार में उनके परम शिष्य चरण दास महंत ने देश की प्रतिष्ठित संस्था पुरातत्व विभाग को जांच पर लगा दिया। बाबा ने एक हज़ार टन सोने के सपना देखा और सोचा के देश के आर्थिक हालात बहुत ख़राब हैं इसलिए वोह यह नेक  काम कर रहे हैं ताकि देश के खजाने में पैसा आये और उसके हालात सुधरे . वैसे बाबा तो मीडिया की चकाचौंध से दूर रहे लेकिन उनके 'हनुमान' ओमी बाबा बहुत 'पहुंचे' हुए नज़र आ रहे है और उनके अन्दर  'गज़ब' का आत्मविशवास झलक रहा था. जब भी मीडिया से मुखातिब होते ओमी बाबा अपनी चौधराहट झाड़ते और बताते के कैसे दिवाली के बाद रुपैया डॉलर और यूरो और यहाँ तक के पौंड से भी उपर आ जायेगा। मतलब साफ़ था, बाबा को पता था के रुपैये के एक्सचेंज वैल्यू क्या है और वोह इस बात से अच्छी तरह से परिचित थे. उन्होंने आगे कह दिया के अभी तो यह शुरूआत  है आगे और भी सोना है जो कानपूर और फतेहपुर में भी छुपा पड़ा है. फतेहपुर में तो कुछ लोग स्वयं ही खुदाई करने चले गए. मैं तो यह भी सोच रहा हूँ के यदि उत्तर प्रदेश के धरती पर इतना सोना गदा हुआ है तो नेता लोगो अब संसद और विधान सभाओं के चुनाव लड़ने के बजाय हर एक किले और खंडहर के अन्दर खुदाई कर रहे होंगे। वैसे भी लोगो में सब्र नहीं है वे सोना देखना चाहते हैं और अगर जल्दी कुछ नहीं निकला तो दो चार लोग पिट जाएँ तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि माहौल ही ऐसे बना दिया गया है . 

प्रश्न यह है के क्या सोना निकलेगा और क्या नहीं ? यह प्रश्न अक्सर मुझे टीवी पर पैनल वार्तालाप में पुछा गया. जब प्रस्तुतकरता और पत्रकार बड़े बड़े रामनामी दुपट्टा ओढे इन बाबाओ से हाथ दिखाते फिरते हैं तो उनसे आप बहुत तार्किक होने की उम्मीद तो न कीजिये। इसलिए के पुरातत्व विभाग देश में सोने की खुदाई के लिए नहीं अपितु देश के ऐतिहासिक धरोहरों को जानने और उनको बचने के लिए बना है इसलिए अगर सोना मिल गया तो भी वोह पुरातत्व विभाग की सम्पति हो जाएगा और नेशनल म्यूजियम में रखा जाएगा लेकिन नहीं मिला तो क्या होगा  ?
क्या लोग बाबाओं पर विश्वास करना छोड़ देंगे ? ऐसा होना वाला नहीं है क्योंकि लोगो को तो लुटने और पिटने की आदत पड़ चुकी है और वोह तो किस्मत, समय काल पर ही दोष मढेंगे न की बाबा के सपने पर. 

बाबा के सपने का विश्लेषण करने के लिए हिंदुत्व के बड़े बड़े मठाधिसो से मेरा पाला पड़ा. किसी ने कहाँ के सुबह का सपना सच होता है तो कोई विश्लेषण करते वक़्त पूरी  वैदिक संस्कृति और उसके गुणगान करने लगे. बहुत से राजनैतिक खेल को समझ चुके थे और यह जानते थे के कुछ निकलेगा नहीं और हिंदुत्व और उसके धर्म की फजीहत हो जाएगी अतः अगले दिन से ही उन्होंने रंग बदलने शुरू कर दिए. कहा शुभ मुहूर्त नहीं क्योकि खुदाई ग्रहण के दिन हो रही है इसलिए सम्भावना नहीं लगती, कुछ ने कहाँ के सपने को दुसरो से साझा करने से वो विकृत हो जाते हैं और एक महान  हस्ती ने यह तक कहा के क्योंकि बाबा के हिसाब से काम नहीं हो रहा है इसलिए सोना अपनी जगह बदल देगा और इन बातो को वैज्ञानिक दृष्टिकोण में ढलने के जिम्मेवारी संघ समर्थक 'स्वप्न' विशेषज्ञों को सौंपी गयी. सभी ने पूरी मुस्तैदी से बात रखी और साधू के महानता और सामाजिक कार्यों के कसीदे पढ़े. जब मैंने कहाँ के मोदीजी कह रहे हैं के देश का मजाक उड़ रहा है तो मेरे पैनल के एक विशेषज्ञ मोदी के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की तरह बात करने लगे. 

सवाल इस बात का है के क्या सरकार हमारे सपनो पर ऐसे बड़े निर्णय ले सकती है और यदि पुरातत्व विभाग का निर्णय पहले से लिया गया है तो क्या उसमे बाबा के सपने को जोड़ना जरुरी था , क्या केंद्रीय मंत्री अपनी मर्ज़ी से कुछ भी कर सकते हैं . लेकिन यहाँ पर हमको भारत के अन्दर पैदा हो रही साम्प्रदायिक राजनीती को समझना होगा जिसमे मोदी अपने को सेक्युलर दखाने का प्रयास कर रहे हैं और कांग्रेस जे जान से ब्राहमणों का आशीर्वाद लेने को आतुर है लेकिन वोह अभी तक मिल नहीं रहा और इन दोनों खेलो में तर्क और मानवता पिट रहा है. अगर सरकार काम नहीं करती तो हिंदुत्व के योद्धा तैयार खड़े थे यह कहने के लिए के हमारी  भावनाओं का आदर नहीं होता। इसलिए इस कार्य को सीधे सीधे हम ब्राह्मण तुष्टिकरण की नीति  सकते हैं जो कांग्रेस को अभी भी आशीर्वाद देने को तैयार नहीं है. 

भारत के संविधान में अनुच्छेद ५१ में साफ लिखा है हम भारत को एक मानववादी नागरिक समाज बनायेगे जहाँ लोगो में तर्क शक्ति का विकास हो और वो वैज्ञानिक चिंतन में यकीं करें न की अन्धविश्वास की गलियों में भटक जाएँ। यह घटना और इसको मीडिया की प्रमुखता यह दर्शाती है के अंधविश्वास को देश के महान  संस्कृति बताकर हम ब्राह्मणवादी एकाधिकारवाद को और मज़बूत कर रहे हैं. मीडिया ने इसमें भूमिका निभाई और इसलिए संस्कृति के नाम पर जितने भी बडबोले टीवी चैनलों पर दिखाई दिए वे सभी ब्राह्मण थे. क्या ऐसी स्थितयों में हम संविधान और उसके  को बढा  सकते हैं. 

सोना अगर नहीं मिला तो शोभन सरकार का कुछ नहीं बिगड़ने  क्योंकि हमारे देश के लोग बाकी सब बातो में तो सवाल कर लेते हैं लेकिन  भाग्य और भगवान को कभी प्रश्न नहीं करते इसलिए सबसे बड़ा खतरा तो पुरातत्व विभाग के लोगो पर है क्योंकि हिंदुत्व के इन कुटिल लोगो के खेल समझने पड़ेंगे और जब इनकी पोल पूरी तरह से खुल जाएगी तो यह वोही बात दोहराएंगे जो इनके ज्ञानवान संत कह रहे हैं. काल, समय, गृह, लगन, दोष आदि के खेल में जनता को  उलझाकर यह सारी असफलता का ठीकरा पुरातत्व विभाग के उपर फोड़ देंगे।

इस सारे खेल में जो सबसे अधिक सोचनीय विषय है वो है मीडिया द्वारा इसको इतना बड़ा बनाने का. ऐसे सवालो पर तो मीडिया को वैज्ञानिक चिंतन देना चाहिए लेकिन हमारा मीडिया उस मामले में पूर्णतया जातिवादी है और ब्राह्मणवादी शक्तियों को खुल्करके समर्थन कर  रहा है और उसमे बैठे ज्यादातर लोग तंत्र मंत्र के पुरे ढकोसले में फंसे पड़े हैं. मैं तो सिर्फ एक प्रश्न पूछता हूँ के क्या एक राष्ट्र इसलिए महान होता के उसके पास लाखों टन सोना है या उसकी सभ्यता उसे महान बनाती है. क्यां इतना सोना मिलने के बाद हम काम करना बंद कर देंगे ? क्या हमें तब विज्ञान और उसकी आवश्यकता नहीं होगी ? क्या हमारे किसानो को कुछ करने की जरुरत नहीं है .

दूसरी बात और भी महत्वपूर्ण है. हम लोग हमेशा उस चीज की तलाश करते है जो हमारे पास नहीं है और जो है उसको प्राप्त करने के प्रयास भी नहीं करते। हमारे सारे पाखंडी बाबा चिल्ला  चिल्ला कर कह रहे थे के शोभन सरकार तो  देश के विकास के लिए १०००टन सोना देश को देना चाहते हैं, वो कोई अपने लिए थोडा सोना मांग रहे हैं .  मेरी केवल एक ही विनती है, कृपया भारत के विभिन्न मंदिरों में रखे २००० टन सोने को वो सरकार को सौंपे जिसकी कीमत ८४ बिल्लियन  डॉलर आंकी गयी है और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इन मंदिरों को एक पत्र भी भेज था जिसमे उन्हें मंदिरों में रखे गए सोने की जानकारी देने को कहा गया है लेकिन मंदिरों और उसके शक्तिशाली ट्रस्टियों ने सरकार को यह जानकारी देने से मना कर दिया है क्या यह देश के साथ धोखा और गद्दारी नहीं है ? क्या इस देश के मंदिर या मस्जिद या कोई अन्य धर्म स्थल देश के कानून से बड़े हैं ? क्या भारत में मंदिरों और इनके मठाधिशो की सल्तनत चलती रहेगी या देश का कानून भी काम करेगा ? हम सरकार से मांग करते हैं के सभी धर्मस्थलो के पैसे पर पूरा टैक्स लगाए और उनके अन्दर रखी सम्पति का ब्यौरा  मांगे।अगर यह दो हज़ार टन  सोना हमारे रिज़र्व बैंक में आ जाए तो देश के सकती है और सरकार को हर जगह पुरातत्व विभाग को खड्डे खुदवा कर सोना ढूंढ़वाने के नाम पर अपनी फजीहत नहीं करवानी पडती  
 
भारत को एक महान और विकसित राष्ट्र हम केवल वैज्ञानिक, तर्कवादी और मानववादी चिंतन से बना सकते हैं . उस परम्परा से यह देश महान  बनेगा जो बुद्ध ने शुरू की और जिस बार आंबेडकर, फुले, पेरियार और भगत सिंह चले. तर्क और मानववाद की परम्परा। इस देश को कर्मशील बनाना होगा ताकि लोग भुत, प्रेत, चमत्कार को दूर से प्रणाम कर अपने रस्ते पर चलते रहे हैं . याद रहे के चमत्कारों के जरिये ही अब धर्म और उनके धुरंधर अपनी  दूकान चला रहे हैं इसलिए चमत्कारों के भंडाफोड़ की आज ज्यादा जरुरत है. आइये आज से ही इस नेक काम को अपने घर से शुरू कर दे ताकि धर्म की इस अंधी कमाई को ख़त्म किया जा सके.