Monday 9 July 2012

हरियाणा का मनुवादी सत्य


विद्या भूषण रावत

हरियाणा के हिसार जिले के भगाना गाँव के लगभग १२० परिवार दिल्ली के जंतर मंतर पर एक जुलाय से धरने पे बैठे हैं. २७ जून को हिसार से चलकर यह लोग १ जुलाय को दिल्ल्ली पहुंचे. तपतपाती धुप में शारीर में बिना कोई कपड़ा पहने, यह लोग हरियाणा राज्य की मनुवादी हकीकत को बयां कर रहे हैं. हिसार के कुख्यात खाप पंचायत ने गाँव के सभी दलितों का सामाजिक और आर्थिक बहिस्कार शुरू कर दिया. 

इस बहिष्कार की शुरुआत कुच्छ नाटकीय तरीके से हुई जब जाटों ने दबंगई दिखाते हुए दलितों को धमकी दी के वोह गाँव छोड़ दे ताकि चमार चौक पर चारो और से ईंट की एक दीवार बना दी जाए.  चमार चौक पर सुरेश, सत्यवान और हिम्मत सिंह के घर हैं जो चमार जाति के हैं. पूरे मोहल्ले के लोग जानते हैं के चमार चौक चमार समाज के सामूहिक जमीन है और जाटों या उनके गाँव समाज का उस पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है. लेकिन फर्जी तरीके से मुक़दमा बनाकर उस जमीन को कोर्ट से गाँव समाज के कहलवाकर तथाकथित तौर पर कानून का पालन करने के कोशिश हुई. ८ अप्रेल २०१२ को दिवार का निर्माण हुआ और सभी लोगो को लगभग घर से बहार निकलना बंद हो गया. पूरे मोहल्ले के लोगो को गाँव छोड़ना पड़ा. गाँव के खप पंचायत ने निर्णय दे दिया के दलितों को बहार जाना होगा. लिहाजा सभी भूमिहीन दलितों ने कलेक्टर के यहाँ धरना देना शुरू कर दिया जिसमे महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.

लेकिन अभी तक कुच्छ कार्यवाही नहीं हुई. हरियाणा के जातिवादी सरकार के निर्लज्जता सामने आ गयी क्योंकि उसमे दम नहीं के वो अपने बिरादरी के लोगो के खिलाफ कानूनी कार्यवाई करे. दलित युवाओ ने फैसला किया के दिल्ली कूच किया जाये और केंद्र की सरकार को इसकी जानकारी दी जाये. लेकिन नेता मंडली को मतलब नहीं, राजनैतिक दलों को कोई मतलब नहीं इसलिए १२० से अधिक लोग भूखे रहकर भी अपनी आज़ादी के लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके जज्बे के सराहना करनी चाहिए हालाँकि जंतर मंतर पर व्यवसायिक नेताओ और सामाजिक कार्यकर्ताओ का जमावड़ा लगा रहता है लेकिन इनके साथ कोई नहीं है इसलिए यह लोग अपने कार्य स्वयं कर रहे हैं . इन्होने राहुल गाँधी से मुलाकात की है और हरियाणा के मुख्यमंत्री से भी मुलाकात के लिए सन्देश आ चूका था. आज ही अनुसूचित आयोग के एक सदस्य यहाँ आ रहे थे.

इन बातो को छोड़ दे तो सवाल ये के जाटों ने इन दलितों को  गाँव से क्यों भगाया. भागना गाँव में करीब २५० एकड़ जमीन है जो गाँव समाज की है और उसकी प्लोटिंग कर भुमीहीनो में बांटा जाना चाहिए था. गाँव पंचायत की और से हर एक भूमिहीन  परिवार से एक हज़ार रुपैया लिया गया ताकि भूमि दी जा सके. लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं. असल में २५० की लूट गाँव की खाप पंचायत ने पहले जमीन को गाँव के सामंतो में बाँट दिया और यदि ये भूमिहीन दलित वहीँ रहते तो उनकी रह में रोड़ा होता.

भगाना गाँव के दलितों को लगातार मुश्किलों का सामना है. करीब ४ महीने से उनके पास कोई काम नहीं है. वोह किसान के खेत पर काम नहीं कर सकते. अपने गाँव और अपने घर बंद हैं. बच्चे कलेक्टर के ऑफिस पे हैं. महिलाएं और बुजुर्ग भेई वहीँ हैं जबकि युवा और बुजुर्ग पुरुष दिल्ली आ गए हैं. वोह बिना न्याय मिले जाने को तैयार नहीं हैं, और यह जरुरी भी है. हरियाणा में कानून और व्यवस्था खापो के हाथ मैं आ गया है जिसका साफ़ मतलब है के वहां की सरकार भारत के संविधान के मापदंडो के हिसाब से नहीं चल रही है. केंद्र सरकार को चाहिए के हरियाणा के मुख्यमंत्री को एक सख्त चेतावनी दे विशेषकर गृह मंत्रालय को ऐसी चेतावनी देनी चाहिए. अगर न्याय पाने के सारे राजनैतिक हथियार ख़तम हो गए तो फिर असली हथियार ही उठाना पड़ता है. सरकार लोगो को माओवादी बनने के लिए मजबूर न करे और हरियाणा में संवेधानिक अधिकारों को लागु करवाए.

हिसार के दलितों के इस ऐतिहासिक संघर्ष में हम सभी का सहयोग होना चाहिए और सभी को हरियाणा सरकार की कड़ी भर्त्सना करनी चाहिए  जो उनको न्याय नहीं दिला प़ा रही. सभी भूमिहीन दलितों को गाँव समाज की २०० एकड़ जमीन से जमीन दी जाए ताकि वे सम्मान सहित जीवन जी  सके. सभी पीड़ित परिवारों को ६ महीने का मुआवजा दिया जाए ताके वो अपना जीवन फिर से बना सके. भगाना के खाप अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओ की पुनर्वृति न हो.

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