Monday 9 July 2012


भारत में  जाति और रंग का सच
विद्या भूषण रावत





आमिर खान ने आज अपने कार्यक्रम में जातिवाद और छुआछूत के बारे में बात की जो शायद भारत के इतिहास में टीवी पर पहली बार हुआ होगा के इतने विस्तार से जाति के बारे में चर्चा हुई. वैसे, अगर कुच्छ दलित साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को और शामिल किया जाता तो शायद कार्यक्रम और बेहतरीन हो सकता था. कार्यक्रम एक दो व्यक्तित्वों के इर्द गिर्द की घूम के रह गया. लेकिन फिर भी उनकी सराहना की जानी चाहिए हालाँकि हम जानते हैं अम्बानी का वरद हस्त आमिर के ऊपर है और वोह अपनी जाति को कभी ख़त्म नहीं करेंगे. 

सवाल केवल जाति का नहीं है. हमारा समाज घनघोर तरीके से नस्लवादी भी है. पंजाब में बुरुंडी नमक एक अफ्रीकी देश के २५ वर्षीया छात्र यानिक को वहां के लोगो ने पथ्थरो से पीट पीट कर इतना घायल किया के वोह गंभीर रूप से घायल है ओर जीवन से संघर्ष कर रहा है. २२ अप्रैल को हुई इस घटना पर पंजाब सरकार चुप है और जब एन दी टी वी पर खबर दिखाई गयी तो सरकार ने ५ लाख रुपैये दे दिए लेकिन अपराधी नहीं पकडे गए.

आखिर पंजाब और हरयाणा ऐसे घटिया राज्य क्यों बन रहे हैं जहाँ इंसानियत मर रही है. वैसे तो इस देश के सभी जगाओ पर जाहिलता ही दिक्खाई दे रही है और सभी नेता ऐश कर रहे है और जनता ट्रस्ट है. हमें ये मान लेना चाहिए के हमएक जाहिल समाज हैं और जो महानता की कहानिया हमारे किताबो में हैं वो कोरी बकवास और झूट हैं. हमारे बच्चे पैदा होते ही अपनी जाती और धर्म के खूंटे में बांध दिए जाते हैं और बाकि का काम हमारी क्षेत्रीयता ने ले लिया है जहाँ अच्छे और बुरे को आपके जाति और क्षेत्र के नज़रिए से देखा जा रहा है. उत्तर के इन दोनों राज्यों में दलितों की हालत क्या हैं यह जग जाहिर है और जिस तरीके से यह सरकारे उनके हितो और हकों को नकार रही हैं उनसे विरुद्ध हमको बोलना पड़ेगा. हरयाणा ने तो बेशर्मी की सारे हदे पार कर दी हैं. राहुल और उनकी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में दलितों के घरो के चक्कर लगते थे लेकिन यहं दिल्ली में उनको फुरशत भी नहीं मिल रही लोगो के घाव पर मलहम लगाने के लिए.

दिल्ली में हरयाणा के हिसार से लगभग १२० परिवार धरने पर हैं लेकिन मजाल क्या के हमारे नेता उनको सुन सके. हरयाणा और पंजाब की कद्दावर जातियों ने तो कसम खाई है के भारत का संविधान वहां चलने नहीं देना. क्या चाह्य्ते हैं हमारे नेता के लोग ऐसे ही धरने पे बैठे रहे और अपने परिवारों को खो दे. मुद्दा जमीन का और जो लोग किसानो की बात करते वोह उन किसानो द्वारा दलितों की हथियाई गयी जमीनों का हिसाब भी मांगे. भारत का किसान भी जाती मानता है और उस पर चलता है. डंडा वही चलता है जहाँ आपकी और कोई और पहचान नहीं केवल घटिया जाती के श्रेष्ठ्थ्ता का घमंड सर पर बोलता है. ऐसे दकियानूसी समाज का क्या इलाज किया जाए.

आमिर ने कहाँ के जाति वाद तब ख़त्म होगा जब हम जाति से बहार शादी करेंगे और उसके लिए केवल एक शर्त है वो के हम अपने बच्चो को उनका जीवन साथी चुनने की आज़ादी दे.. वोह हमको छेनानी पड़ेगी क्योंकि प्लेट पर रख कर वोह भी नही मिलने वाली. अगर हमारे बच्चे अपनी जीवन शैली का निर्धारण खुद करें तो हमारे यह समाज अपने आप टूटेगा और इसके टूटने की ही बुनियाद पर एक नए युग का निर्माण होगा. दोस्तों, समाज टूटने से डरो मत बल्कि कसम खाओ के जब तक हम अपनी मर्जी की जिंदगी ना जिए यह समाज और उसका ब्राह्मणवादी रूप हमारे ऊपर राज करेगा. कोई माँ बाप खुद से अपने बच्चे के लिए अन्तेर्जातिया या अंतर्धर्मी विवाह नाहीए कर पाएंगे. और दुसरे यह, के यह जातीय तब ख़त्म होंगी जब हम व्यक्ति की आज़ादी को अपना मुख्या हतियार बनायेंगे.

ब्राह्मणवादी परमपराओ में हम जकड़े रहे और उसने हमको नचाया.. मौलानाओ और पादरियों ने भी वोह ही किया इसलिए अब जरुरी हैं के आधुनिक भारतीय संविधान को साक्षी मान कर अपना विवाह करो और मज़े की जिंदगी जियोगे. धर्म कर्म टोना टोटका जितना करोगे उस पुराथान पंथी समाज के कब्जे में रहोगे. और इन गाँव से बहार निकलो ताकि वहां यह खापी रह सके.. जिनको केवल अपनी खाप की इज्जात का हुक्का पीना हो वोह वहां रहे बाकि लोग अपने को मनु के उस अन्धकार से बहार निकालो तो अच्चा रहेगा. हमारी आज़ादी हमारे पास है वोह कोई नहीं देगा उसको लेना पड़ेगा. जाति और छुअछोत को ख़त्म करने ले लिए संविधानिक प्रावधानों को सख्ती से लागू करना और उसके लिए सरकारी कर्मचारियों की जबरदस्त ट्रेनिंग ताकि उनका नजरिया बदले. मनुवादी होकर सरकार में रहकर एक आधुनिक संविधान को ध्वस्त करने वालो को समझाना होगा और इसलिए सरकारे के पूरे तंत्र को संवेदनशील बनाना पड़ेगा. इसकी ताकत सेकुलरवाद है और उसको लागू कर देश में धार्मिक कठ्मुल्लाओ और खापों के सरगनाओ के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी पड़ेगी तभी यह देश एक और आधुनिक बन पायेगा नहीं तो हम कोई उम्मीद नहीं कर सकते. जाति वादी ताकतों का खात्मा ही हमारा उदेश्य होना चाहिए और उसके लिए संस्कृति और धर्म की भी बलि दानी पड़े तो कोई बात नहीं.. असल में नयी संस्कृति के लिए पुराने को खत्म करना जरुरी है. जाति के विनाश से मनुवाद का विनाश होगा और तभी एक नयी संस्कृति आ पायेगी जो लोकतान्त्रिक, मानववादी और आधुनिक हो.

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