Friday 13 April 2012


बाबा साहेब के जन्मदिवस पर अभिनन्दन 

विद्या भूषण  रावत

सभी साथियों को बाबा साहेब आंबेडकर के जन्मदिवस पर शुभकामनायें. यह हमारा नव वर्ष है क्योंकि दुनिया के करोडो उत्पीडित समाज को नयी दिशा और आशा देने वाले व्यक्तित्व का आगमन. आज इस नव वर्ष पर आप सभी का अभिनन्दन और उम्मीद करते हैं के देश और समाज में जो दकियानूसी परम्परावादी तकते हावी हो रही हैं उन्हें खत्म करने के लिए हम लोग बाबा साहेब के बताये मार्ग पर चलेंगे.

 बाबा साहेब आंबेडकर भारत के दलित बहुजन आन्दोलन के केंद्र बिंदु हैं जिसमे फुले, पेरियार, शाजुजी महाराज, नारायन्गुरु और अन्य अनेक महापुरुषों का अविश्मरणीय योगदान हैं. लेकिन उनके दर्शन को या उनके कार्यों को  केवल दलित वर्ग तक सीमित करना  उनका अपमान करना है.

बाबा साहेब ने दलितों के उठान के लिए काम किया और वोह उनके सबे बड़े मसीहा मने जाते रहेंगे लेकिन शूद्रों को कौन मन करता है उन्हें अपना नेता मानाने से. क्या बाबा साहेब ने भारत का संविधान केवल दलितों के लिखा. क्या जो क्रन्तिकारी लेखन बाबा साहेब ने किया वोह दलितों के लिए मात्र था. क्या उनकी विभिन्न पुस्तके, जैसे रुपैये की समस्या, जातियों का उन्मूलन कैसे हो, महिलाओं के प्रश्न, सांप्रदायिक समस्या केवल दलितों के प्रश्न हैं. 

मेरा यह साफ़ मानना है के आंबेडकर के चिन्तन दुनिया के सभी लोगो के लिए एक मानववादी चिंतन है. यह इंसान को धर्म और जाती के चंगुल से मुक्त करने का मूल मंत्र है. यह इंसान की क्रन्तिकारी ताकत को पहचानता है और इस चिंतन में भगवान के लिए कोई स्थान नहीं है. इसमें पुरोहितो और पाखंडियों के खाने की कोई गुंजाइश नहीं है. यह चिंतन हमें आधुनिक विश्व का नागरिक बनता है और हमें धर्म और ग्रंथो को चुनौती देने को कहता है. 

बाबा साहेब आंबेडकर ने पूरे जीवन को मानव कल्याण के समर्पित किया. उन्होंने यह जाता दिया के मैरिट किसी के बपौती नहीं है और किसी भी व्यक्ति को अवसर प्रदान करने पर वह मैरिट बना सकता है. उन्होंने बता दिया की हमारी चुनौतिया अपने सामाज से हैं और उसके लिए मनुवादी की केवल आलोचना नहीं करनी है अपितु एक नया विकल्प भी देना होगा. समस्या गाली गलौज के नहीं है क्योंकि वोह तो हम सब जानते हैं.. मुश्किल विकल्प देने में होती है. 


बाबा साहेब ने बुद्धिवादी बनाकर हमें एक नया रास्ता दिया. बुद्ध के मानववादी तर्कवादी विचार में ही हमारी नयी दुनिया है. जब हम बुद्ध और बुद्धि में मार्ग में चलते हैं तो हमारे पास मनुवादियों के लिए समय नहीं है. शुद्रो का संकट उनकी सांस्कृतिक पहचान से जुदा है. वोह न पेरियार के रस्ते पे चले, न फुले के और बाबा साहेब को एक खांचे में ढलने की कोशिश करने से कुच्छ नहीं मिलने वाला. अम्बेडकरवाद में हमारे जीवन का मूल्य छिपा है. मैं जानता हूँ के अब समय है अपने रस्ते में चानले का जो बाबा साहेब ने बताया. जो लोग ब्राह्मणवाद को सुबह शाम गालियाँ देकर शाम को उधर ही स्नान करते हैं, उसी संस्कृति का हिस्सा है, उनके साथ समय ख़राब करके क्या करें. बदलाव की ताकते सबसे पहला कार्य उस संकृति से दूर हो जाती हैं जो उनकी ख़राब हालात के लिए जिम्मेदार हैं. 

यह बहुत बड़ी बात है के बाबा साहेब ने वर्णवाद के न केवल विस्तृत व्याख्या की अपितु उसका एक मानववादी विकल्प दिया. हमारा काम है बाबा साहेब के बताये रास्ते पे चलकर इस देश को बुद्धामय बनाना और देश को प्रबुद्ध भारत के और ले जाना जहाँ समता हो, करुना हो, तर्क हो और अंधविशवास की संकरी गली में हमारा शोषण न हो रहा हो. जाति और धर्म की बदबूदार गली में रहकर मनुवाद के नाश की उम्मीद करना बेईमानी है. उसके लिए तो बाबा साहेब आंबेडकर के सिद्धांतो और उनके विकल्प को स्वीकार करना होगा अन्यथा स्वयं को अम्बेडकरवादी न कहें.

मुझे नहीं लगता के समता, और तर्क के उस मार्ग पर चलकर शुद्रो या किसी और का कोई नुक्स्सान होगा. बाबा साहेब का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक भारत के होने की गारंटी है और यह केवल दलितों के लिए नहीं है शुद्रो और उन सभी के लिए हैं जो भारत को मनुवाद, ब्राह्मणवाद या जातिवाद के चंगुल से मुक्त रखना चाहते हैं. हम सभी के मुक्ति का रास्ता आंबेडकर के दर्शन में हैं आइये इस पर चले और इसे अपनानाये, ब्राह्मणवाद अपने आप समाप्त हो जायेगा. लेकिन ब्राह्मणवाद या मनुवाद आज जाति के दरवाजो से आ रहा है. ब्राह्मणों के स्थान पर एक दो नव ब्राह्मणों को रखकर और उनका महिमंदन कर सभी जातियों को दुबारा से मनुवादी के चंगुल में फंसने की कोशिश की जा रही है उसको समझना जरुरी है. यह रामदेव, या उमा भारती, कल्याण सिंह या शिव राज सिंग इस नए दौर में ब्राह्मणवाद ने अपने चोला बदल लिया है इसलिए उस चाल को जातीयता के खांचे से निकलकर सोचना होगा और मनुवादी की और धकेलने वाले किसी भी बिरदिअरी और जाति के नेता को समझना होगा. आंबेडकर वाद और मनुवाद साथ साथ नहीं चल सकते. जातिवादी राजनीती को ख़त्म कर नए ज़माने के सामाजिक लोकतंत्र को कायम करना अम्बेडकरवादी विचारधारा की सबसे बड़ी जीत होगी जहाँ हम एक दुसरे को शक से न देखें और अपने बच्चो को तर्क और मानवीयता से नए रस्ते के और ले जाएँ. दो विचारधारों के संगर्ष में एक को जीतना है. मनुवादी साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल कर भारत में पुरोहितवाद के पुनर्स्थापना करना चाहते हैं और उसके लिए नए तरीके इजाद कर रहे हैं. अम्बेडकरवाद को उन लोगो से रफ्ता कायम करना होगा जो भारत को प्रगतिशील, लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समतावादी देखना चाहते हैं और उसके लिए अम्बेद्कर्वादियों को मनुवादियों से दूर दूर कोई रिश्ता नहीं रखना होगा और उसके खात्मे के लिए जो प्रयास किये जान उसमे अपना योगदान करना होगा. याद रहे, मनुवाद एक विचार है जो हम सबके अन्दर है और इसलिए वोह अभी जीवित है और वोह आंबेडकर के नवयान को अपनाकर ही समाप्त हो सकती है और तभी भारत के प्रबुद्ध भारत कहलायेगा और यहाँ लोग प्रेम विवाह करके मारे नहीं जायेंगे और हमारी पुलिस महिलों पे हो रही हिंशा को सही नहीं ठहरायेगी और न ही हमारे टीवी चैनलों पे ढोंगी पाखंडी बाबाओ के लिए कोई जरुरत होगी. ऐसा भारत जहाँ हर एक बच्चा स्कूल में होगा और कोई भर भूखा नहीं होगा, किसी को चाय पीने के लिए अलग से कप नहीं लाना होगा क्योंकि तब यहाँ पर हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान को मानाने वाले लोग होंगे और उसको अपने दिल से लगाकर उसके खिलाफ षड्यंत्रकारी लोगो का पर्दाफास कर चुके होंगे. आंबेडकर ने आधुनिक भारत की नीव रखी जिस के फलस्वरूप हम आज इस लोकतंत्र को बचा पाए. आज उनके सपनो को ईमानदारी से धरती पे उतरने का वक़्त आ गया है. 
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