Friday 19 July 2013

मौत का कुआँ




विद्या भूषण रावत 


१ ४ जलाय, रविवार की सुबह का वक़्त था और राजेश अपने चार साथियों के साथ इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट में सेवेज लाइन की सफाई के लिए निकल पड़ा . सामान्यतः यह  छुट्टी का दिन होता है और सब लोग घर  पे अपना काम करते हैं लेकिन पैसे के मज़बूरी ने इन चारो को इस दिन भी काम करने को मजबूर कर दिया उन्होंने सोचा थोडा अतिरित्क्त पैसे से घर के खर्चे निकालने में मदद मिल जाएगी। राजेश के साथ अशोक, सतीश और छोटू भी नई दिल्ली स्थित इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट के कैंपस की और निकल पड़े। 

कैंपस में जाकर उन्हें बताया गया के ६ सीवेज टैंक्स की सफाई करनी है जो ए सी प्लांट के पास हैं  इसलिए सुबह से ही उन्होंने काम करना शुरू कर दिया ताकि दिन होते घर निकल जायेंगे। करीब ६ बजे तक उन्होंने ५ टैंक्स की सफाई कर दी थी लेकिन अंतिम पिट की सफाई में हादसा हो गया.  पुलिस उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले गयी जहाँ राजेश, अशोक और सतीश को मृत घोषित कर दिया गया. अफ़सोस इस बात का है के सरकार के एक प्रमुख संस्थान के अन्दर हुई इन मौतों की कोई जांच नहीं हुई है और पुलिस और अस्पताल ने सभी को अननोन या लावारिस समझ कर मृतक घोषित कर दिया गया और उनके परिवारों को इस प्रकार से चुपचुपी में सुचना दी गयी के वे सुबह तक ही अस्पताल से शव ले पाए. अगर संसथान में किसी सवर्ण जाती के व्यक्ति की मौत होती या वो जो सफाई का कार्य नहीं कर रहा होता तो क्या पुलिस और अस्पताल का रवैया ऐसे रहता . 

अशोक के घर पर भी मातम है क्योंकि परिवार में दो लडकिय और दो बेटे हैं जो छोटे हैं और वह भी किराये के मकान में रहता है. पांच हज़ार तनख्वाह में से चार हज़ार किराये में निकल जाते हैं और इसलिए वह ढोल बजाने का कार्य भी करता था जिससे थोडा अतिरिक्त आय हो जाती थी. आश्चर्य जनक बात यह के दिल्ली में बी पी एल कार्ड का इंतना हंगामा है लेकिन वो इनमे से एक को भी नसीब नहीं है . 

राजेश के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और एक बेटा है. एक जवान बेटी ,की मौत इस वर्ष में हुई और इसीलिये दूसरी की शादी दो महीने पहले कर दिया. छोटा बेटा शायद पहली कक्षा में पढ़ रहा है और इस वक़्त स्कूल जाने के लिए वर्दी नहीं है इसलिए जाने से डरता है . परिवार पर एक लाख रुपैया का कर्ज था इसीलिए वोह दिन रात काम करता था और शाम को घर वापस आकर फिर देर रात तक रिक्शा चलाता था तो घर का खर्च चलता था क्योंकि तीन हज़ार रुपैये किराये में निकल जाते थे और प्राइवेट ठेकेदार से मात्र पांच हज़ार की तनख्वाह पर वो काम कर रहा था. 
 
तीन मौतों के बाद भी कोई चिंता न तो एम् सी डी ने दिखाई और न ही संस्थान के किसी व्यक्ति ने इन मौतों के लिए कोई अफ़सोस या दुःख व्यक्त किया। ठेकेदार का तो क्या कहना उसका तो कोई पता नहीं। इससे पता चलता है के हमारा समाज सीवर में घुश कर उनकी जिंदगी बचने वाले लोगो को कैसा देखता है. यह इस समाज के पाखंड और झूठी शान की कहानी कहते हैं ,  दिल्ली की शान की पीछे एक समाज की कुर्बानिया हैं और उस समाज को हमने जो इनाम दिया वोह था जलालत और छुआछूत का द्वंश। संभ्रांत भारत उनसे केवल काम लेना चाहता है और उनसे काम करवाना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है . 'अगर वोह यह काम नहीं करेंगे तो कौन करेगा' के सवाल खड़े होते है. ' आखिर हम उनसे मुफ्त में तो काम नहीं करवाते । हमारी खोटी ढोंगी मानसिकता में इस काम की कोई कीमत नहीं और जो पैसा हम देना चाहते हैं वोह भीख की तरह से देते हैं.  
 

पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में लगभग ५०००० बाल्मीकि रहते हैं और सभी या तो एम् सी डी या एन डी एम् सी, दिल्ली जल बोर्ड अथवा प्राइवेट ठेकेदारों के साथ काम करते हैं. अधिकांश लोगो को न्यूनतम मजदूरी ही नहीं  मिलती और ठेकेदारों के यहाँ भी रजिस्टर में उनका नाम नहीं होता . सरकार और राजनितिक दलो की लापरवाही के कारण से उनकी स्थिति और विकट हुयी है क्योंकि सैनिटेशन के अलावा दुसरे स्थानों में उन्हें कोई काम नहीं मिलता।

सवाल इस बात का है के इतनी मौतों के बावजूद भी हमारा प्रशासन  कुंडली मारे बैठा है और उसे कोई ख्याल नहीं। हम कहते हैं मैला ढोने का काम बंद होना चाहिए लेकिन क्या काम ऐसे बंद होता है . सीवर पाइप में घुसना भी मलमूत्र के कुएं में जाना होता है और मैं तो इसे मौत का कुआ कहता हूँ जिसमे मर कर आपकी जान की कोई क़द्र नहीं और आप लावारिश की मरोगे। यह शर्मनाक घटनाक्रम है. एक पुरे समाज पे यह काम थोपा गया और फिर उसको अपमान से देखकर उसको और जलील करना क्या जाहिर करता है के  सभ्य कहलाने वाले हमारे संभ्रांत लोग निहायत घटिया, असभ्य और क्रूर हैं जो इस प्रकार की घटनाओं को सही ठहराने की कोशिश करते हैं. 

वाल्मीकि समाज की लड़ाई केवल सरकार से आर्थिक मुवावाजे की लड़ाई नहीं है . यह लड़ाई बड़ी है जिसके लिए दलित  आन्दोलन के अन्दर उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ती है क्योंकि वहां भी वो हाशिये पे है. समाज को हाशिये पर धकेल दिया गया है और जिंदगी और मौत से रोज के संघर्षो के कारण अन्य किसी बात पर सोचने का वक्त कहाँ ?

हम सरकार से मांग करते हैं के सीवर में हुई इन मौतों की जांच करवाए और जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करे, प्राइवेट ठेकेदार को गिरफ्तार करे और इन  घायल व्यक्ति को सम्पूर्ण मुवाजा दे, उनके परिवार का सम्मानपूर्वक पुनर्स्थापन करे. यह तीनो लोग अपना परिवारों को नै दिशा में ले जा रहे थे ताकि उनके बच्चे यह काम न करें लेकिन इनके 'कातिलो' ने उनके परिवारों को सड़क पर ला खड़ा कर दिया है. आज वो अनिश्चय की स्थिति में हैं जो वहुत खतरनाक होती है और जहाँ से अगला रास्ता केवल उनके शोषण का होता है . मानवाधिकार आयोग, दिल्ली सरकार इन पर कार्यवाही करे और इन परिवारों की पूरी जिम्मेवारी ले क्योंकि इन मौत के लिए सरकार और उसका तंत्र जिम्मेवार है . यह मौते असल में हत्या हैं और उन सभी लोगो पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए जिन्होंने इन सभी को मौत के इन कुओं में धकेला।

हमारे एक पाठक ने अंग्रेजी में लिखे मेरे लेख पर अपनी टिपण्णी में लिखा के ' अब सरकार को सफाई का कार्य भी बंद करवा देना चाहिए'. यह एक अस्वेंदंशील टिपण्णी है क्योंकि सवाल यह है के यदि सफाई का कार्य करते ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, जैन, मारवाड़ी या कोई और इन मौत की कुओ में घुसता तो आज तक दिल्ली की सडको में मानवाधिकार के उल्ल्लान्घन के नारे गूंजते। आखिर एक समाज विशेष यह काम क्यों करे? आखिर देश में, घरो में सफाई का ठेका एक समाज विशेष क्यों ले और फिर जव सफाई में पैसा आ गया तो दुकान का ठेकेदारी इन लोगो के पास नहीं लेकिन काम की जिम्मेवारी इनकी। दूसरी बात, सीवर लाइन में घुसने से हर वक़्त मौते हो रही हैं और सरकार बताये के मरने वालो को अभी तक क्या दिया ? सफाई के काम को बंद करने को कोई नहीं कहता लेकिन उसको करने की जिम्मेवारी एक समाज की क्यों? और उसके करने पर मरने वाले लावारिश की तरह क्यों छोड़ दिए जाते हैं ? हमारे पाखंडी, दकियानुशी समाज को इसका जवाब देना होगा ? 

Wednesday 17 July 2013

अपराधी बनाने की तरकीब


विद्या भूषण रावत 

परसों शाम महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के छात्र नमोनारायण मीणा ने मुझे फ़ोन किया तो उनकी आवाज में एक अजब सा तनाव था। 'सर हम लोगो को सी आर पी ऍफ़ ने गिरफ्तार कर लिया है', उन्होंने कहा ? मुझे समाझ नहीं आया तो मैंने पूछा क्यों और तुम कहाँ हो ? 'हम ८ छात्र बनारस से पूर्वी चम्परान आये हुए हैं और एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे हैं। इस गाँव में हमारा सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था. मुझे ध्यान है नमोनारायण इस सांस्कृतिक ग्रुप के विषय में मुझसे अक्सर चर्चा करते हैं और मैंने भी हमेशा कहाँ के थिएटर और नुक्कड़ नाटको के जरिये हम अपनी बात को अच्छे से समाज में पहुंचा सकते हैं। नमो नारायण ने बस इतना कहाँ के सर हम केवल आपको जानकारी दे रहे हैं ताकि साथियों की जानकारी में रहे के वे कहाँ हैं और किन परिस्थितियों में गिरफ्तार हुए है। मैंने उनसे कहाँ के मुझे जानकारी दे के क्या स्थिति है ताकि मैं लोगो से संपर्क कर सकूं। रत में करीब साढ़े नौ बजे पुनः नमो नारायण का फ़ोन आया और अबकी बार तनाव उसके चेहरे पे साफ़ पढ़ा जा सकता था। सर, यह लोगो हमको कही ले जा रहे हैं और हमें कुछ बताया नहीं जा रहा . चारो तरफ अँधेरा है और जंगल है। मैंने उनसे पूछा के क्या इन लोगो ने तुम लोगो से मार पिटाए हुई क्या तो पता चला के अच्चे से की गयी। खैर मैंने कहा के थोड़ी देर में मैं बिहार के अपने साथियों से फोन पर बात कर इन छात्रो तक पहुचने की कोशिश करता हॊ क्योंकि ८ या ९ छात्रो को इस तरीके से पुलिस कहाँ ले जा रही है इसकी जानकारी होनी चाहिए . पटना, चंपारण सभी जगह कोशिश की मित्रो को पकड़ने के लेकिन कामयाबी नहीं मिली फिर खालिद भाई से संपर्क किया तो पता चला वोह भी दिल्ली से बहार है लेकिन उन्होंने अली अनवर साहेब से बात करली थी और हमने भी अली अन्वर जी का संपर्क नमो नारायण को दे दिया। मैंने सोचा के जब ये लोग अपने गंतव्य पर पहुँच जाएँ तो फिर बात करूंगा लेकिन यह क्या रत के साढ़े दस के बाद फ़ोन स्विच ऑफ जा रहा था। मैं जानता हूँ पुलिस वाले फ़ोन, लैपटॉप पहले ले लेते हैं और बात भी बाद में करेंगे पहले पिटाई करते हैं इसलिए मेरी चिंता बढ़ गयी।

सुबह फिर कोशिश की लेकिन कोई संपर्क नहीं हुआ तो नमो नारायण के साथी पंकज गौतम से बात हुई और उन्हें भी इस विषय में बहुत जानकारी नहीं थी। इस पुरे मामले की सबसे ख़राब बात यही थी के किसी को भी जानकारी नहीं दी गयी थे। खैर पंकज ने मुझे बताया के वह साथियों से संपर्क करके पता करेगा और मुझे जानकारी देगा। वैसे थोडा बहुत उसे पता था के यह लोग बिहार गए हैं। दोपहर में पंकज ने मुझे बताया के इन लोगो को गया लाया गया है और शायद दोपहर तक छूट जायेंगे। लेकिन दोपहर में भी फोन पर नमोनारायण से बात नहीं हो पाए और अंततः छूटने के तुरंत बाद उन्होंने मुझे फोन किया तो मैंने ये प्रश्न ही पूछा के तुम्हारा फोन बंद क्यों था तो उसने बता दिया के जिस वक़्त वह अली अनवर जी से बात कर रहा था और उन्हें जानकारी दे रहा था एक पुलिश अधिकारी ने वोह बात होने नहीं दी और फोन छीन लिया और उसके बाद से ही उसे बंद कर दिया गया।

खैर इस घटना की कड़ी निंदा की जानी चाहिए क्योंकि यह सभी छात्र समाज बदलाव के लिए अपनी हैसियत के मुअत्ताबिक कुछ करना चाहते थे और उन्हें गिरफ्तार किया गया और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया और मार पिटाई की गयी। पुलिस ने तो अखबारों को भी बताया की इन लोगो को माओवादी बताकर पकड़ा गया है. फिलहाल यह लोगो को मोतिहारी में ले जाया गया और शाम तक छोड़ दिया गया है .

मैं सभी साथियों से अनुरोध करता हूँ के अपने काम के प्रति उद्देश्यों को कम न करें लेकिन बहुत सावधानी से काम करे। सभी के संपर्क में रहे और स्थानीय संघठनो का सहयोग ले. कही भी ऐसे ही मत जाइये और सभी साथियों को अपने पुरे कांटेक्ट दीजिये . भारत की पुलिस और प्रशाशन आपके विचारो से डरता है। वोह चाहता है आप कुआ खोदे, सड़क बनाएं खडंजा बनवाए, कंडोम बेचें, दूकान लगवाएं, 'भलाई' करें लेकिन आप कोई विचार न दें।। यह विचार से डरने वाले लोग हैं और हमें देखना है की कैसे हम अपने जनमानस को तर्कशील और राजनैतिक तौर पर परिपक्व बना सकें। सभी साथियों को ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा करनी चाहिए क्योंकि अगर इन सभी साथियों के नाम इमरान, सुल्तान मोहम्मद या कुछ और होते तो मैं शर्तिया कहता हूँ के लश्कर, इंडियन मुझाहिदीन या कोई और कह दिया जाता और अगर एनकाउंटर हो जाती तो आश्चर्य नहीं होना चहिये। यह समय है संविधान प्रदत् अधिकारों को मांगने का और उन्हें लागू करवाने का। हम एक मिलिट्री राज्य बन रहे हैं और सत्तारूढ़ तकते यही चाहती हैं के हमारे विचारो की धार कुंद हो जाए और हम पूंजी और धर्म के धंदे में फंसकर इनकी शरण में नतमस्तक रहे।