Friday 11 May 2018

अम्बेडकरवादी बुद्धिस्ट मिशन को समर्पित व्यक्तित्व : डॉ धरम कीर्ति











विद्या भूषण रावत

अगले माह वह अपना अस्सी वा जन्मदिवस मना रहे होते लेकिन प्रकति के नियमो के आगे हम सभी मजबूर है. बाबा साहेब आंबेडकर के विचारो को समर्पित और बौध साहित्य के विद्वान डॉ धर्म कीर्ति का कल रात को नयी दिल्ली के एक अस्पताल में  देहांत हो गया. वह पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. उनकी प्रमुख पुस्तकों में कुछ इस प्रकार से हैं : महान बौद्ध दार्शनिकबुद्ध का समाज शास्त्रबुद्ध का निति शास्त्रबुद्ध कालीन वर्णव्यवस्था और जातिमहान मनोचिकिस्तक बुद्धजाति विध्वंसक भगवान बुद्धमै नास्तिक क्यों बौध धर्म हिन्दू धर्म की शाखा नहीं, गाँधी और गांधीवाद की दार्शनिक समीक्षामानवाधिकारों के पुरौधा डॉ बी आर आंबेडकर, महान बुद्धिवादी दार्शनिक डॉ अम्बेडकर आदि. विभिन्न बौध विद्वानों और दार्शनिको पर तो उन्होंने तमाम पुस्तके लिखी. बाबा साहेब के शिक्षा और वैचारिक क्रांति को उन्होंने अपने जीवन में जैसे उतार ही दिया था इसलिए तमाम बौध साहित्य न केवल पढ़ डाला अपितु उसमे महारत भी हासिल की.
आगरा की ऐतिहासिक धरती में पैदा हुए डॉ धर्मकीर्ति के परिवार के लोग आर्य समाज से प्रभावित थे और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा बौध धर्म में आने की कॉल को सबसे पहले स्वीकारने वाले लोगो में थे. १९५६ में जब बाबा साहेब आंबेडकर आगरा के प्रसिद्ध रामलीला मैदान में आये तो उन्होंने लोगो को बुद्ध धर्म ग्रहण करने की बात कही थे. उसी समय बाबा साहेब आंबेडकर ने डॉ धर्मकीर्ति के घर के पास एक बुद्ध विहार का उद्घाटन भी किया. उस समय तक गाँव में एक शिव मंदिर था लेकिन आर्य समाज का असर होने से बहुत से गाँव-वासी वैसे भी मूर्ति पूजा नहीं करते थे इसलिए जब बाबा साहेब ने बौध धम्म दीक्षा की बात कही तो लोग तैयार हो गए लेकिन कुछ एक लोग इसके विरोध में थे लेकिन अंत में गाँव में लोगो ने शिव मंदिर को हटा बुद्ध विहार की स्थापना की ताकि बाबा साहेब के आह्वाहान का सही अर्थो में स्वागत हो सके.
डॉ धर्म कीर्ति ने बाबा साहेब की ऐतहासिक रैली में भाग लिया और उनके जीवन में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के विचारो का अत्यधिक प्रभाव पड़ा. पिछले वर्ष दिसंबर में मैंने उनका एक बेहद बड़ा साक्षात्कार लिया तो उन्होंने अपने जीवन के अनछुए पहलुओ के बारे में विस्तार से जानकारी दी.वह बताते है के जब बाबा साहेब ने प्रबुद्ध भारत की बात कही तो ये केवल दलितों के लिए ही नहीं थी वह चाहते थे के सवर्ण हिन्दू से भी कह रहे थे के यदि वे मानवता की सेवा और कल्याण चाहते है तो बुद्ध धम्म में आकर अपने में बदलाव लाये. बुध विहार में जहा पूरे मार्ग में बाबा साहेब के स्वागत में गुलाब के पंखुड़िया बिछी हुई थीबाबा साहेब ने कहा के हिन्दुओ की तरह बुद्ध की पूजा मत करो. धम्म में मार्ग में मत आओ यदि आप बुद्ध को ढंग से समझे नहीं हो .यदि आप बुद्ध के मार्ग पर नहीं चल सकते तो विश्व्-व्यापी परिवर्तन नहीं ला पाओगे.
आगरा के इसी रामलीला मैदान में बाबा साहेब की आँखों में आंसू छलके थे जब उन्होंने कहा था समाज के  पढ़े लिखे लोगो ने उनकी उम्मीद के अनुसार काम नहीं किया. डॉ धर्मकीर्ति बताते है के हां ये बात सही है के बाबा साहेब ने ये बात कही के मेरे समाज के पढ़े लिखे लोगो ने मुझे धोखा दिया क्योंकि वे सत्ता के साथ समझौता करते थे और सफल होने के बाद समाज से नहीं जुड़े. सफलता के बाद व्यक्ति हमारे संघर्षो को नहीं पहचानता इसलिए आत्मगौरव कभी भी अहंकार में बदल सकता है. बाबा साहेब आत्मसम्मान चाहते थे लेकिन उसके अहंकार में बदल जाने के खतरे के बारे में लोगो को हमेशा आगाह करते रहते थे.
वे कहते है : मै शिक्षा विभाग में एडिशनल डायरेक्टर पद से रिटायर हुआ. मेरा बेटा एक बड़ा एक आर्टिस्ट है. मेरी बेटी ने शोध किया और वो एक सम्मानित पद पर है. यदि मै गाँव में होता तो केवल खेती कर रहा होता. आज मै जो कुछ हूँ बाबा साहेब के कारण हूँ. लेकिन इसी हकीकत को स्वीकार करने में लोग हिचकते है’.
मैंने तीन विषयो में पी एच डी कीएक विषय में डी लिट् किया और एक में डी लिट् फिर से कर रहा हूँकोई विश्विद्यालयो और शोध संस्थानों में में लेक्चर दिए है. करीब ९० से अधिक पुस्तके लिखी है. क्योंकि मेरे मन में ये बात घर कर गयी के मुझे बाबा साहेब के मार्ग पर चलना हैज्ञान का मार्ग. इसलिए मै हमेशा ऐसी कोशिश करता रहा’.
जब मैंने उनसे पूछा के तीन पी एच डी करने के पीछे क्या कारण था तो उन्होंने इससे सम्बंधित मज़ेदार वाकिया बताया . वह कहते है : “ मैंने आगरा विश्वविद्यालय से अपनी पहली पी एच डी की थी. एक दिन मै दिल्ली विश्विद्यालय के बुद्धिस्ट डिपार्टमेंट में बैठा था. एक मित्र ने पूछा तो मैंने बताया के मैंने आगरा विश्वविद्यालय से पी एच डी की है तो उन्होंने मजाक में मेरी बात को लिया और कहा के अगर असल पी एच डी करनी है तो यहाँ से करके दिखाओ. अब उन दिनों दिल्ली में पी एच डी करने के लिए पहले एम् फिल करनी होती थी जो मैंने नहीं की थी इसलिए मैंने एम् फिल का फार्म भरा और उसे पूरा किया. अगले वर्ष मैंने पी एच डी के लिए एनरोल किया और उसे एक वर्ष के अन्दर ही करके दे दिया. थीसिस लिखना मेरे लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी इसलिए आसानी से लिख दी. कुछ वर्षो बाद किसी सज्जन ने मुझे ताना मारा के मेरा विषय तो दर्शन है लेकिन उसमे कोई शोध नहीं है तो मैंने मेरठ विश्विद्यालय से उसे भी कर लिया.
1963  से डॉ धर्म कीर्ति ने आगरा के प्रसिद्ध बलवंत सिंह राजपूत कालेज में दर्शन शास्त्र विभाग में पढ़ाना शुरू किया जो के उस दौर में बहुत बड़ी बात थी. मैंने उनसे पुछा के क्या कभी उन्हें कालेज में जातिवाद नजर आया तो उन्होंने बताया के नहीं. हाँ एक घटना का जिक्र करके उन्होंने बताया के कालेज के ऑफिस के सामने पानी पीने का एक घड़ा रखा रहता था जिससे सभी अध्यापक लोग पानी पीते थे लेकिन कालेज के क्लर्क ने मुझे वहा पानी पीने से साफ़ मना कर दिया. मैंने इसकी शिकायत वह के प्रचानाचार्य डाक्टर आर के सिंह से की जिन्होंने उस क्लर्क को बहुत बुरी तरह से झाड लगाईं के उसके बाद से वह प्रश्न ही ख़त्म हो गया’.
प्रारंभिक दौर के अम्बेडकरवादी विचारो से परिपक्व और कार्य प्रणाली में व्यवहारिक थे. वे किसी भी किस्म के पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं थे. मैंने भगवान् दास जीएल आर बाली आदि के साक्षत्कार भी किये और सभी से पता चला के उनका झुकाव बे सभी शुरूआती दौर में आर्य समाजी थे और अपने अन्दर प्रगतिशील विचारो के लिए बहुत हद तक आर्य समाज को भी जिम्मेवार बताते है. उसके अलावा सभी अपना झुकाव वामपंथ की और मानते थे हालाँकि सभी ने भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों में जातिगत भेदभाव के विषय में व्यापक तौर पर लिखा और उसकी आलोचना भी की.
आगरा में राहुल संकृत्यायन जी का भी आना जाना लगा रहता था. डॉ धर्म कीर्ति जी बताते हैं के उनके राहुल जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे. वो कहते है राहुल जी ने एक बार कहा के जिसे मूर्ख बनना हो तो संस्कृत पढ़ सकता है. मैंने तो वो उम्र पार कर ली जब लोगो को मुर्ख बनाया जा सकता है. उनका कहना था का लिपि का कोई मूल्य नहीं होता. मुख्य महत्त्व तो उसमे मौजूद विचारों का है. सारे वेद उपनिषदपुराणस्मृतिया संस्कृत में हैं इसलिए कोई मनुष्य इन्हें पढ़ेगा तो विचारों को पढने के लिए ही जाएगा लिपि नहीं और जो इन्हें पढ़ेगा वो तो पागल हो जाएगा.
राहुल जी के बारे में एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए वह कहते हैं : राहुल जी आगरा में किसी ऋषिकेश चतुर्वेदी के घर पे आया जाया करते थे और वहीँ से वह हमारे बुद्ध विहार में आते थे. एक दिन ऋषिकेश जी ने उनसे पूछ लिया के कहा जा रहे हो तो उन्होंने बताया के मैं बुद्ध विहार जा रहा हूँ तो चतुर्वेदी जी ने शायद कोई जातिसूचक टिपण्णी कर दी . राहुल जी से रहा नहीं गया बोले ‘ पांच हज़ार साल से तुम उनको मारते आये होअपमानित किये हो तो कुछ नहीं और आज यदि वो तुमको गाली भी दे देया तुम्हारी गर्दन भी काट दे तो भी ये बहुत कम होगा. उसके बाद वह हमेशा ही हमारे बुद्ध विहार में ही ठहरे’.
डाक्टर धर्म कीर्ति ने मुझे भदंत आनंद कौत्यल्यायन के साथ भी अपने संस्मरण सुनाये. ऐसा लगता था के वह अम्बेडकरी आन्दोलन के महतवपूर्ण इतिहास को अपने में समेंटे हुए थे इसलिए मेरे लिए यह जरुरी था के सबको दस्तावेजीकरण कर सकू.

डॉ धर्मकीर्ति को बौध दार्शिनिक धर्मकीर्ति ने बहुत प्रभावित किया और इसी कारण उन्होंने अपना नाम धर्म कीर्ति रखा. दरअसल उनके बचपन का नाम कालीचरण था. इस विषय में चर्चा करते हुए वह बताते हैं :
‘ मेरा नाम कालीचरण था . मेरे पिता जी आर्य समाजी थे. पंडित काली चरण शास्त्री नामक एक आर्य समाजी विद्वान थे जो संस्कृतफ़ारसी और अरबी के विद्वान थे. मेरे पिता भी मुझे उन जैसा बनाना चाहते थे इसलिए मेरा नाम कालीचरण रख दिया. जब मैंने एम् ए और पी एच डी कर ली तो बी पी मौर्या ने मुझे सलाह दी के मैं अपना नाम बदल दूं. वो कहते थे के तुमने तो १९५६ में ही बुद्धिस्ट हो गए लेकिन नाम अभी भी वही चल रहा है इसलिए तुम्हे इसे बदलना चाहिए. मुझे भी ये नाम पसंद नहीं था. सवाल यह था का नया नाम क्या हो धर्म कीर्ति छटवी शताब्दी में नालंदा में एक बौध दार्शनिक थे. वह मूलतः केरला के रहने वाले ब्राह्मण थे जिन्होंने बुद्ध धर्म में आकर अपना नाम धर्मकीर्ति रखा. मैंने भी उनसे प्रभवित होकर अपना नाम आधिकारिक तौर पर १९९६ में धर्म कीर्ति रख दिया.
मैंने पूछा आचार्य धर्मकीर्ति ने उनको कैसे प्रभावित किया तो डॉ धर्म कीर्ति उनका एक प्रमुख बात बताते है : यदि कोई वेदों को प्रमाण मानता हैऔर फिर उनके आधार पर ये मानता है के ईश्वर ने पृथ्वी की रचना की हैस्नान करके धर्म की पूर्ती होती हैकोई जातिवाद को मानते हुए छुआछूत करता है के ये ईश्वर की देन हैऔर पाप को नष्ट करने के लिए शरीर को कोई कष्ट देता हैतो इन लोगो की प्रज्ञा नष्ट हो गयी है. ये पांच चिन्ह मूर्खो की पहचान है.
डॉ धर्मकीर्ति का बौध धर्म और दर्शन पर गहन अध्ययन था. उनके विचारों पर राहुल संकृत्यायन और भदंत आनंद कौत्स्य्लायान का भी असर दिखाई देता है. वह मानते थे के बौध धर्म को भी ब्राह्मणों ने घेर लिया और ऐसी बातो को इसमें डालने की कोशिश की जो बुद्ध ने कभी कही ही नहीं.
मजेदार बात यह के डॉ धर्म कीर्ति ने भूदान आन्दोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी की. मैंने उनसे पुछा आखिर विनोबा के अध्यात्म को उन्होंने कैसे स्वीकार कर लिया जब वह अम्बेडकरवादी आन्दोलन से जुड़े हुए हैं तो उनका जवाब साफ़ था. वह बोले के मैं विनोबा के साथ उनके अध्यात्म के कारण नहीं अपितु भूदान आन्दोलन के कारण जुडा. मुझे लगा के हमारे लोगो को जमीन की जरुरत है और ऐसे में यदि कोई व्यक्ति आन्दोलन कर रहा हो जिससे हमारे समाज को लाभ होता हो तो क्या बुराई है. और इस आन्दोलन के चलते उन्होंने बहुत से लोगो को भूमि आवंटन करवाने में सहयोग किया.
डॉ धर्मकीर्ति ने जीवन पर्यंत अपने सिद्धांतो से समझौता नहीं किया. वह बी पी मौर्या के बहुत करीब थे लेकिन जब मौर्या ने भाजपा का दामन थामा तो उन्होंने साथ देने से इनकार कर दिया. भाजपा के लोगो ने उन्हें अपने पास बुलाने के बहुत प्रयास किये. वह कहते है के दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री श्री साहेब सिंह वर्मा ने उन्हें अपने यहाँ चाय पर बुलाया और उन्हें भाजपा में शामिल होने के दावत दी और राज्य सभा की सद्स्त्यताया किसी कमीशन का पदभार या किसी राज्य का राज्यपाल आदि का प्रलोभन देने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया.


डाक्टर धर्मकीर्ति के पास विचारों और अनुभव का खजाना था. उनके जाने से अम्बेडकरी मिशन को बहुत अधिक हानि हुई है क्योंकि इस उम्र में भी उनमे मैंने पूरी ऊर्जा पाई. वह लगातार अध्ययन कर रहे थे और लिख भी रहे थे इसलिए अचानक से उनका चले  जाना बहुत दुखदायी है. ऐसे समय में जब देश में दलितों के उपर हमले हैं और मनुवादी ताकते भिन्न भिन्न तरीको से सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है और दलितों और अन्य प्रगतिशील मानववादी ताकतों पर हमला कर रही है, डॉ धर्मकीर्ति के ओजस्वी बाते उनको ताकत और उर्जा प्रदान करती. मुझे ख़ुशी है के मैं उनसे मिल पाया और लम्बी बात हो सकी. दुःख है के उनसे दोबारा बात नहीं हो पायी हालाँकि फोन पर बाते होती रही. फिर भी उनसे बात करके मुझे लगा के वह अम्बेडकरवाद को जीते थे और इसीलिए शायद उन्होंने अपने घर का नाम भी राजगृह रखा. उनके साथ हुई सम्पूर्ण बातचीत को आने वाले समय में youtube पर अपलोड करेंगे क्योंकि अम्बेडकरी आन्दोलन के लिए ये बड़ी धरोहर है. डाक्टर धर्मकीर्ति  को हमारा हार्दिक नमन.