Wednesday 5 December 2012

Lokaayat: भारत के संकल्प का दिन

Lokaayat: भारत के संकल्प का दिन: विद्या भूषण रावत  आज 6 दिसम्बर है। भारत वर्ष के करोडो लोगो के लिए एक शोक का दिन जब वे बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की पुन्य  स्मृति को या...

भारत के संकल्प का दिन




विद्या भूषण रावत 

आज 6 दिसम्बर है। भारत वर्ष के करोडो लोगो के लिए एक शोक का दिन जब वे बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की पुन्य  स्मृति को याद करते हैं जिन्होंने हमारा जीवन बदला और हमें ससम्मान संघर्ष की प्रेरणा दी। उनकी जलाई मशाल हमारे दिलो में जलती है और हमें बदलाव की और जाने को प्रेरित करती है। संघर्षरत हर एक व्यक्ति के लिए आंबेडकर रोज उनके पास है। उनके कथनों और संघर्षो को हम रोज गुनते हैं और पढ़ते हैं। भारत के दलित बहुजन आन्दोलन के नायक हैं बाबा साहेब आंबेडकर है और उनको केंद्र में रखे बिना यह आन्दोलन कभी आगे नहीं बढ़ सकता। आंबेडकर एक विचारधारा का नाम है जिसने हिंदुत्व और वर्णवादी ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विकल्प भारत को दिया और जिस पर चलकर करोडो लोगो का जीवन बदला है। भारत में हुई शांतिपूर्ण क्रांति के प्रतीक है आंबेडकर और यदि  जालसाज ताकते अपनी तिकड़मो से बाज नहीं आयी तो यह शांति एक नयी क्रांति को जन्म दे सकती है और हो सके वोह क्रांति शांतिपूर्वक न हो।

1980 और 1990 के दशक भारत में उथल पुथल और बदलाव के थे। बामसेफ की ताकत बढ़ी। कांशीराम ने बहुजन समाज के नारे को  पुरे देश में प्रचलित किया और केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने बाबा साहेब के शताब्दी वर्ष में उनका सम्मान किया। उनका साहित्य देश भर में लोगो को सस्ते दरो में उपलब्ध हुआ। और जिन बाबा साहेब को भारत के हुक्मरानों ने संसद के बाहर रखा, उनके चित्र को संसद के अन्दर लाया गया। बाबा साहेब हालाँकि के भारत रत्ना से बहुत बड़े हैं लेकिन उनको भारत रत्ना देने से भी बहुत लोगो को परेशानी हो गयी। 1990 में मंडल के आने के बाद तो ब्राह्मणवादी ताकतों को लगने लगा के यदि अब कुछ  ऐसा नहीं किया गया जो लोगो को दिग्ब्रमित कर दे तो वर्णव्यस्था की चूले हिल जाएँगी और हिंदूवादी ताकतों की एकछत्र राज समाप्त हो जायेगा। और इसलिए एक बहुत बड़े 'प्रोजेक्ट' पर कार्य शुरू हुआ और इसका नाम था 'अयोध्या'.

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए लाल कृष्णा अडवाणी रथ यात्रा पर निकले। उनके मानाने की कोशिश हुई लेकिन वे नही माने'.  देश में खून खराबा हुआ लेकिन उससे उन्हें क्या मतलब। वर्णवादी बाबाओ को आगे किया गया। राम मंदिर के लिए ईंटो को देश भर में घुमाया गया।खूब चंदा इकठ्ठा हुआ लेकिन मजाल क्या की किसी ने चंदे का हिसाब माँगा हो। बाबरी मस्जिद के नाम पर भी दुकाने सजी। जब हिन्दू वर्णवादी सामने आएगा तू मुस्लिम सामंती ताकते पीछे रहेंगी क्या। उन्होंने भी अपनी दुकान सजाई और लोगो पिसते रहे। खैर 1990 में केंद्र सरकार इसलिए गयी क्योंकि वो अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वंश को बचा पायी क्योंकि तैयारी तो उस वक्त भी थी।

केंद्र में नरसिम्हाराव की सरकार आये और वो तो पूर्णतया संघ में प्यार में पागल थी। तिकडमें  उनको पूरी करनी थी। वाजपेयी और अडवाणी उनके परम मित्र थे। फिर अडवाणी ने यात्रा निकली और इस बार कसम खाई के मंदिर जरुर बनायेंगे। लेकिन मंदिर बनाना मुख्या उद्दश्य नहीं था। मुख्या उद्देश्य था दलितों और पिछडो में आ रही बदलाव की चाह  और क्रांति को खत्म करना। दलितों को बाबा साहेब ने एक दर्शन दिया और इसलिए बाबा साहेब से जुदा कर तो कोई उन्हें अपने पाले में नहीं ला सकता लेकिन पिछ्डी  जातियों में सांस्कृतिक बदलाव के आभाव में मुस्लिम विरोध के नाम पर और 'राम' के नाम पर बहुत बड़ा तबका हिंदुत्व के पाले में आ गया। इसके लिए कल्याण सिंह, उमा भारती, शिव राज सिंह, और बहुत से अन्य नेताओ को आगे बढाया गया। यानी हिंदुत्व का भी मंडलीकरण  हुआ लेकिन इसके मूल में था मुसलमानों का विरोध और सत्ता की नकेल ब्राह्मणवादी ताकतों के हाथ में। इसलिए मैं ये मानता हूँ, बाबरी मस्जिद का ध्वंश हिंदुत्व की एक चाल  थी जो मुसलमानों के विरोध के नाम पर विभिन्न जातियों को  हिंदुत्व के नियंत्रण में या उनके अधीन लेन की एक साजिश थी जिसमे वे सफल हुए।  ऐसे नेता समुदायों के नाम पर आये जिन्हें पार्टी की मंडल विरोधी स्वरूप से कोई मतलब नहीं था वे तो राम के नाम की दुकान चला कर लोगो को बरगलाना चाहते। इसलिए राम मंदिर का आन्दोलन और कुछ  नहीं दलित पिछडो को धर्म के नाम पर कुंद कर देने का आन्दोलन था जो मंडल के बाद की आग को बुझाने में कामयाब होगया और बहुत बेहतरीन तरीके से संघ के विशेषज्ञों ने इस पर सेंध मारकर जातिविरोधी आग को आज दलित विरोधी आग में बदला है।

अब नए बाबा पैदा किये जा रहे हैं और वो जातियों के नाम पर आ रहे हैं। इन साजिशो को ध्यान देना पड़ेगा। अस्मिता की राजीनति या कूटनीति के पहले विशेषज्ञ संघ परिवार है। यह हमेशा ध्यान रखना पड़ेगा। 

बाबरी मस्जिद के ध्वंश में कांग्रेस और नरसिम्हाराव की भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता। कांग्रेस की दोगली चलो ने हिंदुत्व के इन ठगों को मज्बूत किया। अगर इतने मज्बूत थी कांग्रेस तो नरसिम्हाराव ने अपने पहले प्रसारण में बाबरी मस्जिद के दोबारा निर्माण की बात कही लेकिन हिंदुत्व के मठाधीश यह जानते हैं के अब कोई पार्टी ऐसी बात नहीं करेगी क्योंकि 'सांप्रदायिक' तनाव बदेगा। सबचुप हैं।

अफ़सोस के जिन लोगो को जेल के सीखचों में होना चाहिए था वे देश के मंत्री और भविष्य भी बन रहे हैं।   क्या यह भारत के लोकतंत्र का दोगलापन नहीं के यह यदि मुसलमान दंगो में फंसे तो आतंकवादी, दलित और आदिवासी अपने मुद्दों पर हिंसक हो तो नक्सलवादी  और माओवादी लेकिन ब्राह्मणवादी हिंसक हों तो सीधे सत्ता में आते हैं और रास्ट्रवादी  कहलाते हैं। इस बात को संघ से लेकर हिंदुत्व की सारी कौम जानते है हैं इसलिए ठाकरे अपराधी नहीं होते, मोदी मुख्यमंत्री बनते हैं और अडवाणी के उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री बन्ने पर किसी को अफ़सोस नहीं होता, कोई आवाज नही उठती। आज अडवाणी हमारे सभ्य देश के सभ्य नागरिक हैं और कोई नहीं कहते के सी बी आई क्यों नही मुकद्दमा चलती। लालू और मुलायम या मायावती के नाम पर चिल्लाने वाले ये क्यों भूल जाते हैं के आज तक सांप्रदायिक और जातीय दंगो को करवाने वाले एक भी हिंदुत्व के हिंसक को सजा नहीं मिल पाई है। ये दिखता है हमारा देश कितने खतरनाक तौर पर सांप्रदायिक जातीय लोगो की गिरफ्त में है।

दलित बहुजन समाज की एकता ने भारत में सम्प्र्दायिक्क ताकतों को बाहर  खदेड़ा लेकिन आज  उनके बीच बढ़ती दुरी भारत में जातीय दुराग्रह और सांप्रदायिक ताकतों को दिल्ली की और बढ़ने के संकेत दे रही है। यह बिलकुल सच है के दलितों में वैचारिक मजबूती आ चुकी है और वोह ऐसी परिस्थितयों को समझ चुके हैं। आज बाबा साहेब को नमन करने का दिन है और ये भी समझना जरुरी है के अम्बेडकरवाद में भारत की एकता और प्रबुद्ध भारत बनाने  की ताकत है। इसलिए आंबेडकर और उनके दर्शन को अपनाकर अन्य लोग भी आगे बढ़ सकते हैं। और मुझे यकीं है के भारत में एक तर्कवादी मानववादी संस्कृति के चाहने वाले लोगो बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारो में अपनी क्रांति के बीज देखेंगे ताकि इस देश में चल रही हिंदुत्व की साजिशी संस्कृति को समाप्त किया जा सके और के पूर्णतया प्रबुध समाज की नीव डाली जा सके जहाँ कम से कम सत्ता का तंत्र धर्म निरपेक्ष हो और सरकार भेदभाव रहित काम करे और  आगे बढ़ने का मौका हो। 

हिंदुत्व के ताकतों ने बाबरी मस्जिद के ध्वंश के लिए आज का दिन चुनकर भारत में आंबेडकर के  मानववादी दर्शन को खत्म करने की कोशिश की है और उसके स्थान पर मनुवादी ब्राह्मणवादी दकियानूसी परम्परो को अमली जमा  के प्रयास किये हैं जो कभी सफल नहीं होंगे। हमें विश्वाश है के सभ्य समाज के सभी लोग कभी भी अपना जीवन इन कुंठित, दम्भी और पाखंडी लोगो के हवाले नहीं करेंगे और इन सबके लिए हमारे सामाजिक जीवन में वैकल्पिक सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है और वोह बाबा साहेब आंबेडकर के जीवन दर्शन से हमको मिलता है। आइये उनके प्रबुध्ध भारत के आन्दोलन को आगे बढ़ाएं।