अन्ना के आन्दोलन की परिणाम है प्रशांत पे हमला
विद्या भूषण रावत
प्रशांत अन्ना की टीम के एक अलग सदस्य हैं. उन्होंने बहुत से आन्दोलनों को कानूनी सहायता प्रदान की है और वोह भूमि अधिग्रहण के विरोध करने वालो में अग्रणी रहे है लेकिन अन्ना टीम के बाकी साथी वैसे नहीं है. उनकी प्रथमिकताये पता है. खुद अन्ना का कहना है के वो प्रशांत पे हमले का विरोध करेंगे लेकिन यह भी जानना चाहेंगे के आखिर हुआ क्या और उन्होंने कहा क्या था?
हमारा पहले से ही मानना था के अन्ना के आन्दोलन से सांप्रदायिक और जातिवादी शक्तियां मज़बूत हो रही है. खुद प्रशांत भूषण से कई बार पूछा गया की आपके आन्दोलन में मंच से भी दलित और पिछड़े विरोधी बाते सुनायी दे रही है और मनुवादी मोर्चा वहां लगातार बैठा है तो उन्होंने इस बात को केवल यह कह के ताल दिया के इतने बड़े आन्दोलन में तरह तरह के लोग आयेंगे और हम सब के मुह को कण्ट्रोल नहीं कर सकते. यह इतना खतरनाक स्टैंड था और प्रशांत अब उस व्यवस्था का शिकार खुद बन गए . आज अन्ना की टीम हालाँकि बोलने की स्वतंत्रता के नाम पर प्रशांत का बचाव कर रही है लेकिन खुद अन्ना के आन्दोलन में अन्ना इज इंडिया और इंडिया इज अन्ना के लंबरदारो ने मत भिन्नता वालो के साथ जैसा वर्ताव किया वोह जग जाहिर है. आज भी अरविन्द केज़रिवल ओर किरण बेदी जो भाषा बोल रहे है और स्वयं अन्ना जो भाषा बोल रहे है, ऐसा लगता है के देश की नैतिकता का ठेका उन्होंने ले लिया है और हर एक वोह जो उनसे भिन्न है वो देश द्रोही है. फर्क इतना है की अन्ना के चेलो ने सबको पकड़ में मारा नहीं लेकिन उनके आन्दोलन से उत्साही ताकतों ने उन्ही के साथी पे हमला करके बता दिया है के यदि अन्ना की टीम के लोग अपने अजेंडा को यदि बृहद करेंगे और मानवाधिकारों तक ले जायेंगे तो उसको सहन नहीं किया जायेगा.
हमें नहीं भूलना चाहिए के यही चिदंबरम और उनके पुलिस ने अरुंधती रॉय पर देशद्रोह का मुक़दमा चला दिया और कश्मीर पर दिल्ली में एक सेमिनार में मुंबई के एक तीसरे दर्जे के कश्मीरी हिन्दू को भारतीय रास्ट्र की और से टीवी पर भौंकने की आज़ादी दे दी और अर्नव गोस्वामी जैसे हिंदुत्व के नए प्रहरी अपने कार्यक्रम में देशभक्ति और देशद्रोह का प्रमाणपत्र बाँटते रहे और चीखते चिल्लाते रहे की देस्ख्द्रोहियों से सख्ती से निपटा जाए. क्या हम नहीं जानते यह नए बादशाह किस प्रकार से मतभिन्नता वालों को देखते है. प्रशांत पे हुए हमले से यह परेशान हैं क्योंकि हिंदुत्व का फासीवादी चरित्र सामने आ गया है और इसे वो छुपाने में असमर्थ थे और यह के हमला जिस पर हुआ वो उनका 'अपना आदमी' है, इसलिए हमले का विरोध करो न की उस बात का जिस ले लिए हमला किया गया. क्या हमें नहीं पता के यासीन मालिक या अरुंधती रॉय ऐसा कह दे तो इन्ही लोगो का क्या हश्र हुआ होता . वैचारिक स्वतंत्रता के पक्षधर ये ही लोग उन्हें देश्द्रोही और रास्ट्रविरोधी कहने से नहीं हिचकिचाएंगे.
हम इस प्रकार की घटनाओ की मात्र निंदा करके इतिश्री नहीं कर सकते. यह एक बड़ा प्रश्न है और अन्ना आर उनकी टीम के लिए भी के दिल्ली की सडको में जो उनके लम्पत्धारी बाईको में तिरंगा लगाये, ' मै भी अन्ना' की टोपी लगाये दूसरो को धमका रहे थे वोह एक ट्रेलर था. कल प्रशांत के साथ जो हुआ वो अन्ना के आन्दोलन की अंतिम परंनिती है. विचार् भिन्नता के प्रश्नों को अन्ना जैसे आन्दोलन कभी स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि उनको तो सारा भारत रेलगांव सिद्धि नज़र आता है जहाँ लोकतंत्र के नाम पर अन्ना तंत्र है और एक मसीहा है जो उनकी भलाई के लिए 'भगवान ' ने पृथ्वी पर भेजा है. अन्ना इस बात को कई बार कह चुके हैं के उन्हें लगता है के वो किसी 'बड़े' काम के लिए आये हैं और उन्होंने गीता के इस श्लोक को बार बार दुहराया है 'जब जब होए धर्म की हानि'. ब्राह्मणवाद को बचाने के लिए जैसे कृष्ण ने पृथ्वी पे जन्म लिया वैसे हे अब अन्ना का अवतार हुआ है क्योंकि हिंदुत्व खतरे में है. इसलिए उनके साथ चलने वाले साथियों के विचार यदि ब्राह्मणवादी रास्ट्रवाद से कहीं पे भी भिन्न हुए तो उनके साथ भी वो हे होगा जो प्रशांत के साथ हुआ है. याद रहे, अन्ना और उनके साथी हमले का विरोध कर रहे हैं और किसी ने प्रशांत के विचार का समर्थन नहीं किया है. वो केवल विचार भिन्नता के नाम पर अपने को बचा रहे है और इसलिए बोल रहे है क्योंकि प्रशांत अन्ना की कोर कमिटी के सदस्य हैं.
मात्र भीड़ इकठा करने से कोई आन्दोलन नहीं होता. आन्दोलन का एक दर्शन होता है और वोह दर्शन क्या है यह तो किसी को पता नहीं. अगर इस देश को सबसे बड़े आन्दोलन की जरुरत है तो अपना दिल साफ़ करने की है न की नए कानूनों की. हमारे पास कानूनों की भरमार है इसलिए पहले जाती और धर्म के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर जो कबाड़ हमारे देश के 'ठेकेदारों' के पास है उसे हटाइए तभी एक रास्ट्र बनेगा. भ्रस्त्रचार के विरोध के नाम पर यदि मनुवादी तंत्र को लोगो के ऊपर थोपा जायेगा तो उसके परिणाम भयंकर होंगे. इसलिए टीम अन्ना को चाहिए के पहले अपने समर्थको और उनके विचारो को बदले और उन्हें समझाए के देश कोई हिंदुत्व की जागीर नहीं है और यह लोगो से बनता है और लोगो की राय के बगैर कोई काम नहीं हो सकता और न ही कानून हो सकता. यदि कश्मीर का प्रश्न को भारतीय ब्राह्मणवादी रस्त्रवाद से देखोगे तो कभी उसका उत्तर नहीं मिलेगा. उसके लिए कश्मीर के लोगो को समझना होगा और उनकी भावनाओं की क़द्र करनी पड़ेगी. केवल वन्देमातरम की नैतिकता से भारत के विभिन्न राज्यों की मूलभूत समस्याओं का हल निकालना पड़ेगा और उसकी सबसे बड़ी शर्त है राजनैतिक मतभिन्नता का सम्मान. क्या टीम अन्ना इसके लिए तैयार है?