Thursday 11 July 2013

Dangerous Idea of Dera Sachha Sauda regarding Women's of Uttarakhand who lost their Husbands



डेरा सच्चा  सौदा के 'महात्मा' का कहना है के उनके १५ ० ० अनुयायी उत्तराखंड की त्राशादी में विधवा हुयी महिलाओं के साथ विवाह करने को तैयार हैं। सवाल इस बात का है के क्या यह एक क्रांतिकारी कदम है या बाबा उत्तराखंड में पूरा दफ्तर बनाना चाहते हैं . क्या किसी ने इन महिलाओं से पुछा और उनसे बात भी की के उनकी क्या समस्या हैं ? क्या इन महिलाओं की घरेलु जिनदगी की और किसी का ध्यान गया? क्या बाबा की बात में यह नज़र नहीं आता के महिलायें पति के बिना 'अबला' नहीं  हैं और उन्होंने संघर्ष किया हैं , । पहाड़ो में जिन्दगी बहुत कठिन है लेकिन महिलाओं ने अपना संघर्ष किया है और वो पुरुषो से अधिक काम करती रही हैं इसलिए उनको अबला कहना अपमान है। भारत के समाज में महिलाओं के साथ जो  हुआ है उस अपमान को आप पुनः परंपरा के खूंटे से ना बंधे तो अच्छा होग. हम तो चाहते हैं के महिलायें अपने दर्द को भुला कर अपनी जिंदगी को पुनः शुरू करें और जो मदद सर्कार और समाज को करनी है वोह करें। यह बहुत ही बेवकूफी की बात होगी की अभी घटना को घटे एक महिना भी नहीं हुआ है और हम शादी के प्रपोजल लेकर वहां पहुंचे ? शायाद पुरुषवादी मानसिकता का नतीजा है के अभी से महिलाओं के बारे निर्णय ले रहे हैं और उन्हें लग रहा है जैसे बहुत बड़ी क्रांतिकारी बात कर रहे हो . हम तो चाहेंगे के समय आने पर महिलायें स्वयं इनका निर्णय लें और यह तभी संभव होगा जब वे सार्वजानिक जीवन में आयें और समाज उनको उत्साहित करे. किसी भी समाज में बदलाव के लिए बाहर से 'क्रांतिकारियों' को आयात करने की आवश्यकता नहीं है . हमें उम्मीद है के उत्तराखंड के अन्दर भी ऐसे जुझारू साथी होंगे जो समय आने पर सही निर्णय ले सकते हैं लेकिन महिलाओं को 'अबला' समझकर एहसान करने वालो से सावधान रहने की जरुरत है खासकर वो लोग जो धर्म की दुकानदारी लगाकर अपना व्यापार आगे बढ़ाना चाहते हैं ।  उत्तराखन्ड में महिलायें किसी भी दुसरे प्रान्त से बेहतरीन स्थिथि में हैं और अपने अधिकार जानती हैं। यह वो जगह हैं जहाँ साक्षरता और लिंग अनुपात रास्ट्रीय औसत से ज्यादा है इसलिए हमारे क्रन्तिकारी बाबा यदि समाज की मदद करना चाहते हैं तो अच्छा लेकिन अहसान और भीख देने की कोशिश न करें तो बेहतरीन होगा।

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