Thursday 24 October 2013

सुर न सजे क्या क्या गाउ मैं …



विद्या भूषण रावत 

आज सुबह मन्ना डे के निधन की खबर से दुःख तो हुआ लेकिन इसके लिए हम तैयार भी थे. अपने जिंदगी को भरपूर तरीके से अपनी शर्तो पर जीते मन्ना दा  चले गए और उनके इतने वर्षो की सुर साधना की खास बात यह रही के उन्होंने उसूलो से कभी समझौता नहीं किया। उनको 'एक आँख मारू तो रास्ता रुक जाए' या अन्य इसी प्रकार के सड़क छाप गाने गाना मंज़ूर नहीं था. बम्बई अच्छी नहीं लगी तो बंगलोर का रुख कर लिया और जब फिल्मो में उनके मतलब की बाते नहीं आ रही थी तो 'मधुशाला' जैसे महान कविता संग्रह को उन्होंने और अमर बना दिया।

मन्नाडे उस दौर में आये जब सिनेमा के पटल पर राज कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद का राज चलता था और इन तीनो महान अदाकारों की अपनी विशेष छवि थी जिसके अनुसार ही उनके प्लेबैक सिंगर्स मशहूर हुए और संगीत भी तैयार हुआ क्योंकि यह लोग संगीत की भी अच्छी समझ रखते थे. राज कपूर तो मुकेश-शैलेन्द्र-हसरत जयपुरी और  
शंकर जयकिशन के साथ जोड़ी बना लिए तो दिलीप कुमार की अधिकांश फिल्मो के लिए गायन  मोहम्मद रफ़ी का था और संगीत नौशाद और गीत अक्सर शकील बदायुनी के होते थे. देवानंद के लिए सचिन देव बर्मन ने धुनें तैयार की और मजरूह के खुबसूरत गानों को किशोर कुमार ने और हसीं बना दिया। इन सभी महान कलाकारों के चलते मन्ना डे ने अपना एक ऐसा मुकाम बनाया जो उनके इन सबसे  अलग करता है और महान भी बनता है. मन्ना डे ने उन गानों को सुर दिया जिसे शायद दूसरा वैसा सुर नहीं दे पाता। 

अगर १९५० के समय से संगीत के दौर को देखें तो पता चलेगा के जिस विविधता से मन्ना डे ने अपने गानों में रंग भरा वो किसी के लिए दोहराना मुश्किल है इसलिए उनके गानों के नकली कसेट आपको कम मिलेंगे। नदी में चलते माझी के गानों को क्या उनसे अच्छा कोई गा पायेगा। हरेक स्वर में सुन्दरता है और दिल की पुकार है . नदिया चले चले  रे धारा ( फिल्म सफ़र ), या अपनी कहानी छोड़ जा कुछ तो निशानी छोड़ जा ( दो बीघा जमीन ) को शायद ही कोई भुला पाए . फिल्म सीमा का बलराजसाहनी पर फिल्माया गया यह बेहतरीन गाना ' तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूँद के प्यासे हम', आज भी हमारे दिलो को सीधे असर करता है. काबुलीवाला  फिल्म में ' ऐ मेरे प्यारे वतन तुझपे दिल कुर्बान' या उपकार का ' कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बाते हैं बातो का क्या' आज भी दिलो को झकझोरते हैं. 

मन्ना डे टाइप्ड गायक नहीं थे. उन्होंने ऐसे गीत गाये जो गाने में बहुत मुश्किल थे इसलिए आज भी आसान नहीं है उनकी नक़ल करना या उनको दोहरा देना। जहाँ वह राजेश खन्ना के लिए आनंद में 'जिंदगी कैसी है पहेली' गा रहे थे तो वहीँ प्राण के लिए फिल्म जंजीर में गायी उनकी कव्वाली का आज भी जवाब नहीं। आज भी ' यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी' एक मास्टरपीस है  जिसने प्राण को अमर कर दिया। महमूद के लिए भी मन्ना दा ने बेहतरीन गीत दिए. 

जिस समय राज कपूर मुकेश को अपनी आत्मा की आवाज कह रहे थे वहीँ उन्होंने मन्ना डे की प्रतिभा को पहचाना और बात ऐसे बनी की राजकपूर की फिल्मो के बहुत से अविस्मरणीय गीत दिए.  दिल का हाल सुने दिल वाला, फिल्म श्री ४२० का ऐसा गाना है के आज भी हमें नाचने पर मजबूर करता है. फिल्म मेरा नाम जोकर का प्रसिद्द गीत, ' ऐ भाई जरा देख के चलो', या फिल्म दिल ही तो है का ', लागा चुनरी में दाग' आज भी बहुत चाव और सम्मान से सुने जाते हैं. बलराज साहनी पर फिल्माया 'वक़्त ' फिल्म में उनका यह  चुलबुला गीत आज भी बेमिशाल है और उतना ही जवान है जैसे उस वक़्त था ', ऐ मेरी जोहरा जबी, तुझे मालूम नहीं, तू अभी तक हैं हसीं और मैं जवान, तुझपे कुर्बान मेरी जान मेरी जान. शायद आज भी इन गीतों के मुकाबले न तो गीत आये न संगीत पैदा हुआ क्योंकि मन्ना डे के लिए संगीत साधना थी एक धंधा नहीं था. 

जब सुरों में साधना होती  है और इमानदारी होती है तो सुर खुबसूरत बन जाते हैं और यही बात मन्ना दा के सुरों के साथ थी. आज भी ' ये रात भीगी भीगी, ये मस्त बिघायें, उठा धीरे धीरे वोह चाँद प्यारा प्यारा, या आजा सनम मधुर चांदनी में हम, तुम मिले तो वीराने में भी आ जायेगी बहार,  झुमने लगेगा आसमा, आदि गीत हमारे दिलो पर राज करते हैं और सबसे बेह्तरीन रोमांटिक गीतों में शुमार किये जाते हैं.
 
 मन्ना डे ने सही समय पर बम्बई को टाटा कर दिया था नहीं तो रफ़ी, किशोर, आदि की तरह उन्हें भी आँख मारने वाले या लड़की पटाने वाले  गाने गाने पड़ते जो उनके लिए मुश्किल था. मन्ना डे खुद बताते हैं के कैसे उन्होंने किशोर कुमार के साथ 'एक चतुर नार गाया' जिसमे उनको किशोर से हारना था और किशोर कुमार के कहने पर उन्होंने यह गाना स्वीकार किया जिसे हम सब बहुत मस्ती से  सुनते हैं. जो हुआ वो अवश्यम्भावी था लेकिन ये जरुर है के मन्ना डे के बात एक पूरी पीढ़ी ने  बम्बई की फिल्मो से विदाई ले ली है. मुकेश, रफ़ी, किशोर की पीढ़ी और जज्बे के इस महान कलाकार के जाने से एक युग का अंत है लेकिन जैसे के मैंने पहले भी कहा लेजेंड्स कभी मरते नहीं हैं, वे हमेशा जिन्दा रहते हैं अपने कला के साथ, अपनी साधना के साथ लोगो को सन्देश देते हैं बेहतरीन करने का और कर्णप्रिय संगीत देने का. जब जब सुरों की बात होगी, संगीत की धुन बजेगी मन्ना डे की मधुर आवाज हमेशा याद की जायेगी क्योंकि संगीत एक बहता दरिया है जो रुकता नहीं है, चलता रहता है अनवरत। 

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