Tuesday 27 November 2012





भारतीय राजनिति को विश्वनाथ प्रताप सिंह की देन 


विद्या भूषण रावत 


आज भूतपूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की पुण्य तिथि है। देश की राजनीती में उनके योगदान को हमेशा याद किया जायेगा क्योंकि उनके किये गए प्रयोग आज की राजनीती के मुख्या स्तम्भ हैं। भ्रस्ताचार के खिलाफ उनके अभियान के कारण उन्हें मंत्रिपरिषद से हटना पड़ा था और मंडल लागु करने के कारण  भारत के ब्राह्मणवादी तबका उनका सबसे बड़ा दुश्मन बना।

अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आम जनता से जुड़ने का प्रयास किया और मूल्यों पर आधारित राजनीती की। दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों के लिए उनके संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता। सुचना का अधिकार और नरेगा जैसे सवालो पर भी वे देशव्यापी संघठनो  के साथ खड़े थे।

धुर्भाग्यवाश रिलायंस के विरुद्ध भ्रस्थाचार का धामभ भरने वाले तथाकथित कार्यकर्ताओ को पता नही की राजीव की मंत्रिपरिषद वित्त मंत्री की हैसियत से धीरू भाई अम्बानी की हालत ख़राब करने वाले वी पी को रिलायंस की दुश्मनी जिंदगी भर झेलनी पड़ी लेकिन दादरी में रिलायंस के जिस पॉवर प्लांट को लगवाने के लिए किसानो की भूमि को कौड़ियो के भाव मुलायम सिंह के फैसले के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया और लोगो को उनकी जमीन वापस दिलवाई।

वी पी सिंह में दंभ नहीं था और आज के दौर की राजनीती में भी उन्होंने जनोन्मुख राजनीती की। आज उनकी कमी इसलिए खलती है क्योंकि तीसरे मोर्चे को जीवंत रूप देने वाले वह ही थे। उनके अन्दर एक करिश्मा था, एक नैतिक बल था जो उन्हें औरो से बहुत ज्यादा आगे खड़ा करता था। अस्मिताओ की राजनीती की दौर में उन्होंने उन लोगो से भी गालियाँ खाई जिनके लिए वह अपने समाज से दूर हटते चले गए। वी पी का जीवन और उनकी राजनीती भारत में जाति और उसके खूंटे से बंधे होने के हमारे चरित्र को भी दिखता है। उनके प्रति इतनी नकारात्मकता की भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्दोनल के 'मसीहा' लोग भी उनका नाम लेने से डरते हैं। उसका करान केवल एक के दलितों और पिच्च्दो के हक के लिए उन्होंने जो भी कुच्छ किया उसे हिन्दू वर्ण व्यवस्था के शुभचिंतको ने कभी माफ़ नहीं किया। इससे यह भी जाहिर होता है के वर्णव्यवस्था के विरुद्ध किसी भी आन्दोलन को समाप्त करने के लिए ये आतताई कुछ भी करेंगे और उन सबका नाम मिटा देने की पूरी कोशिश करेंगे जो उनकी राह  में रोड़ा थे। 

चाहे वे जो भी करें लेकिन जो बीज वी पी ने बो दिए उनसे देश के राजनीती नहीं हट सकते। अब उसको आगे उनलोगों को बढ़ाना नहीं जिनके संगर्ष के वे साथी थे  हालाँकि पिच्च्दी राजनीति को हिंदुत्व ने काट खाया है और इस कारण से ही ब्राह्मणवादी सम्प्रदायकता का मुकाबला करने में हम असमर्थ हैं या उसका हिस्सा बन गए हैं। सामाजिक न्याय की कोई लड़ाई सम्प्रदाकिता की लड़ाई को छोड़ के नहीं हो सकती। वी पी इन दोनों प्रश्नों पर बहुत साफ़ रहे और उनके मूल्यों से सीखकर हमारे वर्तमान राजनीती के 'तीसरे मोर्चे' को खड़ा कर सकते हैं। वी पी सिंह हो उनकी पुण्य तिथि पर श्रन्धांजलि।

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