Wednesday 30 October 2013

Lessons from anti sikh violence in Delhi




खून की विचारधारा या विचारधारा का खून 


विद्या भूषण रावत 


दिल्ली में ३१ अक्टूबर १९८४ की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर ही गयी थी और देश भर में अफवाहो का बाज़ार गर्म  था क्योंकि उनके निधन की सूचना आकाशवाणी और दूरदर्शन पर शाम ६ बजे दी गयी. तब तक देश के विभिन्न शहरो में 'सिखो' को सबक सिखाने के 'कार्यक्रम' शुरू कर दिए गए. राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे और देश भर में उनके प्रति  अभूतपूर्व सहानुभूति की लहर चल रही थी. अगर इस 'सहानुभूति' का सही भाषा में अनुवाद करें तो उसके मतलब थे के राजीव गांधी का 'हिन्दू' संस्कार बन रहा था और संघ से लेकर रामनाथ गोयनका तक सभी उनके दीवाने हो गए. सभी ने नए नेता की खूब तारीफ की और अपने प्रथम भाषण में राजीव ने गंगा की सफाई के अभियान की बात भी कही और देश को एक नए युग में ले जाने  की बात भी कही. 

देश भर में दंगे होते रहे या साधारण भाषा में कहें तो 'सिखो' का कत्लेआम जारी था और प्रशाशन कही मौजूद नहीं था. गुंडे और बदमाश 'सबक' सिखा रहे थे लेकिन यह केवल उनका खेल नहीं था. भारतीय समाज का पूरा सम्प्रदायिककरण हो गया था. हिन्दू अस्मिता देश के शाशन और प्रशाशन पर हावी थी और हिन्दू समाज खतरे में थे और उसके लिए राजीव के  हाथ मजबूत करना जरुरी था. इसलिए शायद संघ ने कांग्रेस को समर्थन दिया क्योंकि राजीव और कांग्रेस उस वक़त हिन्दू अस्मिता के प्रतीक बन गए इसलिए उन दंगो के परिपेक्ष्य को देखें तो मतलब साफ़ है के वोह हिन्दू और सिख दंगे बनाये गए जिसको कांग्रेस नेताओ ने राजनीती के लिए आगे बढ़ाया और संघ के लोगो ने छिपे तौर समर्थन किया। दंगे भले ही कांग्रेस के तत्वो ने कराएं हों लेकिन नानाजी देशमुख जैसे 'विचारवान' लोगो ने इन दंगो को सही ठहराया। 

भारत में हिंदुत्व या उग्र सवर्णीय मानसिकता को समझने की जरुरत है क्योंकि यह ही हमारे रास्ट्रवाद की संरक्षक बन जाती है और जब यह मानसिकता हावी होती है तो इसके सामने सारे तर्क बेकार हैं. यह के फासीवादीराष्ट्रवादी विचार के ऊपर चलती है और  राष्ट्र के हित में अलावा कोई नहीं सोचता। इसलिए देश में जब थी दिन तक हिंसा का नंगा नाच होता रहा तो उसको सही ठहराने के लिए बहुत सी बातें आयी. वोह  बिलकुल वैसे ही हैं जैसे हम मुसलमानो के लिए कहानियां बनाते हैं. कहा गया के इंदिरा गांधी के मरने पर सिखो ने लड्डू बनते और खुशियां मनाई। फिर कहा गया के दो सिखों ने इंदिरा गांधी की हत्या कि है, इन्होनें भारत माँ को मारा है इसलिए सारे सिख मारे जाने चाहिए। 

वो दौर देश का सबसे खतरनाक दौर था जब  हर एक सिख शक के दृस्टि से देखा जा रहा था और उसकी पहचान और अस्मिता खतरे में थी. यह भारतीय राजनीती और प्रशासन के हिन्दुकृत होने की कहानी भी थी. यह वो दौर था जब सिख विरोध को प्रशासन और राजनीती की सह थी और हकीकत यह है के जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर को छोड़ दे तो स्वर्ण मंदिर पर सेना के हमले को पुरे भारत के 'मुख्यधारा' यानि सवर्ण मीडिया और सवर्ण पार्टियों का समर्थन था और इसमें हिंदुत्व और उनके सारे तत्त्व सबसे आगे थे. स्वर्ण मंदिर पर सेना भेजने के लिए तो पंजाब केसरी जैसा हिन्दू अख़बार सबसे आगे बहस कर रहा था. चंद्रशेखर ने इंदिरागांधी के कदम कि आलोचना की और इसे देश के एकता के लिए खतरनाक कहा. 

सिख विरोधी हिंसा और मानसकिता इंदिरा गांधी की हत्या के एक वर्ष बाद भी ख़त्म नहीं हुई. सभी आरोपितो को लोकसभा और विधानसभाओ के टिकट दिए गए और वे नेता १९८४ कि सिख विरोधी आंधी में भारी मतों से चुनाव जीत के आये और एक बार हमारे नेता चुनाव जीतते हैं तो वे क़ानूनी अड़चनो को आराम से दूर कर लेते हैं क्योंकि 'जनता' की अदालत ने उनको चुनाव जिता दिया तो इसका मतलब ये के उनके सौ खून माफ़.इसमे कोई शक नहीं के उस समय जनता में गुस्सा था और उस गुस्से को सांप्रदायिक या रास्ट्रवादी सवरूप देने में राजनैतिक लोग पूर्णतया आगे थे लेकिन सत्ताधारयों से जो सयम और निस्पक्ष रहने की उम्मीद  की जाती है वो कही नज़र नहीं आयी. राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी की प्रथम पुण्य तिथि पर कहा के ' जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है' और इस प्रकार के वक्तव्य आग में घी डालने का काम करते हैं और प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले व्यक्ति को शोभा नहीं देते।

सिख विरोधी दंगे हो या बाबरी ध्वंश के बाद के दंगे या गोधरा कांड के बाद की परिस्थितियां सब में माइनॉरिटीस को स्टीरियोटाइप बनाकर काम किया गया हैं. अगर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के दंगो में 'मिठाई बांटना' और 'ख़ुशी मानना' एक हथियार बनाया गया तो गुजरात २००२ में 'गोधरा' का कत्लेआम 'जिम्मेवार' बताया गया. बाबरी मस्जिद इसलिए गिरायी गयी क्योंकि वह पर एक 'मंदिर' था. इस प्रकार हज़ारो दंगो में कोई न कोई बहाना बनाकर देश के अकलियतों को डराया धमकाया गया है और प्रशासन ने हिन्दू होने कि भूमिका निभायी है . इंदिरा गांधी कि हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे हुए क्योंकि उनको मरने वालो का धर्म सिख था इसलिए 'सबक' सिखाया गया. सवाल यह है राजीव की हत्या की बाद 'हिंसा' क्यों नहीं हुई ? गांधी की हत्या एक चित्पावन ब्राह्मण ने कि तो फिर उन्हें 'सबक' क्यों नहीं सिखाया गया ?तब ब्रह्मणो के ऊपर क्यों कहानिया नहीं बनी ? 

समझना पड़ेगा हमारी मानसिकता को जहाँ अल्पसंख्याको के हर बात पर एक स्टीरियोटाइप बनती है, और नए प्रकार की अफवाहे फैलाई जाती हैं और एक गलत व्यक्ति के गलत कार्य को कौम का गलत कार्य बता कर माहौल बनाया जाता है. जब हम इंडियन मुजाहिदीन, पाकिस्तान या दावूद का नाम बार बार लेते हैं तो हम कहीं न कहीं मुसलमानो को कठघरे में खड़ा करते हैं के इनके पापो को हिसाब उनको देना है. संघ या हिंदुत्व के पापो का हिसाब कोई नहीं मांगता।ताकतवर की हिंसा 'रास्ट्रीय' महत्व की होती है वोह देश की एकता और 'अखंडता' के लिए जरुरी होती है. उसको सही ठहराने के लिए हमारे पास पचासो आर्गुमेंट हैं। सिख विरोधी हिंसा इसलिए क्योंकि इंदिराजी को मारा, गुजरात इसलिए क्योंकि गोधरा हुआ, बाबरी इसलिए क्योंकि राम जन्मभूमि को  तोडा,राम मंदिर आंदोलन इसलिए क्योंकि शाहबानो के मामले में सरकार झुकी, बम्बई में दंगे इसलिए क्योंकि मुस्लमान सड़क पर आये, मुजफ्फर नगर इसलिए क्योंकि मुस्लमान लड़के हिन्दू लड़कियों को 'पटा' रहे हैं और यह कहानियां बढ़ती ही जायेंगे। आज भारत के समक्ष मानसिकता का संकट है. आज संकट है इस संविधान को बचाने का क्योंकि मनु के वरद पुत्र नकली पुत्रो से परेशान हो गए हैं और अब वे स्वयं ही इसको बदलने की सोचते हैं. देश के गैर हिन्दू लोगो में दवाब बने के और उनको बदनाम करने की राजीनति से हमको निकला पड़ेगा। उन सभी को सबक सीखने की निति से देश को कुछ नहीं मिलेगा जो चाहते हैं के सभी लोग जो एक खास किस्म के विचारो और तौर तरीको को नहीं मानते हैं. 

एक सभ्य भारत पूर्णतया सेक्युलर और कानून के शासन से चलेगा। इस वक़्त जरुरत है साम्प्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के विरुद्ध एक सख्त क़ानून की. संसद को इसे तुरंत पास करना चाहिए और किसी भी आड़ में हिंसा को जायज ठहरने वालो से सख्ती से निपटा जाए. सरकार ऐसे विशेष न्यायालयो की स्थापना करे ताकि ऐसे सभी आतंकवादियों को उनकी असली जगह पंहुचा दी जाए. यदि न्याय नहीं मिलेगा तो लोगो के गलत रास्तो पर जाने की सम्भावना रहती है. भारत में  यह हकीकत  है के अल्पसंख्यको पर हिंसा को ताकतवर समाज 'रास्ट्रीय' स्वरुप दे देता है फलसवरूप राजीव, मोदी, कल्याण सिंह, शिव सेना इत्यादि पार्टियां सत्ता पर काबिज होते हैं और अन्याय की स्थिति में भटके नौजवानो को हम आतंकवादी कहते हैं. अल्पसंख्य्को के पास अपने बात को कहने के लिए क्या आप्शन है क्योंकि सत्ताएं उनकी बात तभी सुनती है जब वोट बैंक के तौर पर उसका फायदा हो और यदि नहीं तो कोई मतलब नहीं। मोदी ने मुस्लमान विरोध को इसलिए मज़बूत किया के वो हिन्दू वोट से मतलब रख रहे थे और अब रास्ट्रीय स्तर पर वह जानते हैं के बिना मुसलमानो के लाल किले का उनका सपना धरा का धरा रह जाएगा इसलिए इतनी बड़ी कवायद हो रही है सेक्युलर दिखने की. 

भारत की सियासत और सियासतदानो को देश के गैर हिन्दुओ को शक की दृस्टि से देखने और हिन्दू रास्ट्रवाद में उनको ढालने के किसी भी प्रयास से बचना होगा। हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान के खतरनाक जुमलो से बचना होगा और हमारे संविधान की सर्वोच्चता को हमारे नित्य जीवन में लागु करना होगा। संविधान को तोड़ने वाली ताकते देश में हावी होने का प्रयास कर रही हैं और हमारी कोशिश होनी चाहिए के उसकी सर्वोच्चता को हमारे देश में लागु करवाएं। अगर हमारे नेता और अधिकारी ३१ अक्टूबर को अपने कर्तव्यों का सही प्रकार से निर्वहन करते तो देश में इतना बड़ा कत्लेआम नहीं होता, न बाबरी मस्जिद गिरती और न गुजरात की हिंसा होती। देश को बचने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द की जरुरत है लेकिन वोह दुसरो को डरा के नहीं अपितु हमारे राजनैतिक, सामजिक और प्रशासनिक जीवन में भागीदारी के बिना सम्भव नहीं है. किसी समुदाय को बदनाम करके, उसको अलग थलग करके और उसकी संस्कृति और अस्मिता को मिटा कर देश कभी आगे नहीं बढ़ सकता और इसके लिए आवश्यक है हम सब में विविधता का सम्मान करने कि और कानून के प्रति इज्जत बढ़ने कि और संविधान को हर स्तर पर लागु करवाने के ताकि फिर कभी ऐसी घटनाओ कि पुनरावर्ती न हो और सभी लोग देश में बिना किसी भय के रह सकें? घृणा आधारित राजनीती पर प्रतिबन्ध लगाया जान चाहिए और कम से कम जो अपने को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं वो तो प्रगतिशील बने और गर्व से अपनी बातो को रखें। गुजरात २००२, या मुजफ्फर नगर २०१३ या बम्बई १९९३ नहीं होता यदि सेक्युलर राजनैतिक दल अपना काम सही से करते लेकिन अफ़सोस उनके दोगलेपन से सांप्रदायिक लोगो को मज़बूती मिली और देश पर एक बार फिर उसी खतरे का सामना कर रहा है. उम्मीद है हम सब पिछली घटनाओ से सबक लेकर आगे बढ़ेंगे। 

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