Sunday 19 August 2012

क्या समाजवादी पार्टी ने फूलनदेवी का राजनैतिक इस्तेमाल कर भुला दिया

विद्या भूषण रावत

फूलन देवी की हत्या हुए लगभग ११-१२ वर्ष होगये हैं. उनके हत्या के कारणों की जांच चल रही है और वोह कहाँ तक पहुँची उसकी न किसी को जानकारी है और न ही चिंता. दुखद बात तो यह के न ही फूलन को राजनीती में लेन वाले लोगो ने उनके परिवार वालो के बारे में जानने की कोई कोशिश की . यह साबित करता है हमारी राजनीती का क्या स्वरूप है और यहाँ चढ़ते सूरज को सलाम है और जब आपके सितारे गर्दीश में हो या डूब गए तो फिर आशा न करें के कोई राजनेता उसकी जानकारी भी लेगा. यह भी सत्य की जिन लोगो को राजनीती की सही जानकारी नहीं या जिनका मन उस प्रकार की तिकड़मो में नहीं है वोह राजनीती नहीं कर सकते हैं और फूलन की सहजता और राजनीतिक असमझ के कारण की आज उनकी पार्टी के ही लोगो ने उनको पूर्णतया भुला दिया है.

फूलन के पैत्रिक गाँव शेखपुरागुद्धा गाँव में आज भी उनका परिवार अपमान और नारकीय जिंदगी जी रहा है. जालौन जिले के कालपी शहर से लगभग १०-१२ किलोमीटर दूर बीहड़ो  के बीच बसा शेखपुरा गाँव यमुना के किनारे पे बसा है. फूलन की छोटी बहिन रामकली अपनी माँ और बेटे के साथ यहाँ रहा रही हैं. यह घर फूलन के पिता ने बनवाया था और थोडा इंदिरा आवास योजना की मदद लेकर एक छोटा सा बाथरूम और एक कमरा बना है. यहाँ आकर यह नहीं लगता के एक  सेलेब्रिटी सांसद के परिवार के सदस्य आज खाने को मोहताज हैं. 

फूलन की माँ और बहिन के पास कुच्छ नहीं है. हद तो यह है के उनके पास अपने इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं है. यदि एक दिन मजदूरी नहीं करेंगे तो घर में चूल्हा नहीं जलता. माँ इलाज़ न हो पाने की वज़ह से अपने बेटे शिव नरियन के पास  ग्वालियर चली गयी वोह पुलिस में काम करता है. फूलन के ताऊ और उनके चचरे भाई मैयादीन ने पत्रिक सम्पति को हड़प लिया फलस्वरूप उनके पिता के पास कोई सम्पति नहीं आये. फूलन को पहली बार जेल उनके चचरे भाई मैयादीन ने ही भिजवाया जब उसने अपने पिता का हको की मांग की.

जब मैं रामकली से मिला तो मेरी आँखों में सन्नाटा था. क्या मैं उस परिवार के सदस्य को देख रहा हूँ जिसकी दो बार सदस्य दो बार सांसद बनी. फूलन ने आत्मसमर्पण के बाद ८ वर्ष जेल में बिताये और फिर रिहाई के बाद समाजवादी पार्टी ने उनका इस्तेमाल करना शुरू किया. फूलन के नाम पर मल्लाह बिरादरी को इकठ्ठा किया गया और उनको मिर्ज़ापुर क्षेत्र से चुनाव लड़ाया गया. उनकी बहिन और गाँव के अन्य सदस्यों का साफ़ मानना था के फूलन गाँव के लिए बहुत कुच्छ करना चाहती थी लेकिन उम्मेद सिंह ने उनकी उम्मीदों को ख़त्म कर दिया. वोह ये मानते हैं के जहाँ समाजवादी पार्टी ने उनको राजनैतिक तौर पर इस्तेमाल किया वहीँ उम्मेद ने उनके पैसे पर नज़र रखी और आज फूलन के न रहने पर उनकी पूरी सम्पति पर कब्ज़ा कर बैठा है जबकि उनकी माँ और छोटी बहिन आज दर दर को मोहताज हैं.

रामकली का दर्द बयां नहीं किया जा सकता. उसने सपने देखे अच्छी जिंदगी के. फूलन एक जिंदादिल इंसान थी लेकिन थी बहुत भोली. उसका सपना अपने गाँव में दुर्गा माँ एक विशाल मंदिर बनवाने का. वोह चाहती थी बहुत कुच्छ करना लेकिन राजनैतिक अपरिपक्वता के चलते ऐसा संभव नहीं था. फूलन एक राजनेता नहीं थे. वो एक विद्रोही थी जिन्होंने अपने साथ हुए अन्याय को सहन नहीं किया. उन्होंने शर्म से सर छुपा कर जीना स्वीकार नहीं किया और सर उठा कर बदला लिया. समाज ने उनको कई नाम दिया. क्रूर, दस्यु सुंदरी और न जाने क्या क्या लेकिन फूलन वाकई में अपने इर्द गिर्द रह रही घटनाओं का शिकार होती चली गयी.

उनका व्यक्तिगत जीवन एक कहानी था जिससे हमारे समाज की लडकिया सीख सकती हैं के जिनके साथ दुर्व्यवहार होता है उनको शर्म से जिंदगी नहीं अपितु इज्जत से जीना सीखना पड़ेगा आखिर कोई भी महिला अपने पे तो हिंसा नहीं करती. जो उन पर हिंसा करता है उसके विरुद्ध कार्यवाही हो. फूलन उन मध्य वर्ग की महिलाहो की तरह नहीं रही जो  उन पर हिंसा होने के बाद घुट घुट कर जिंदगी  जीती, न ही उन्होंने मरने की सोची. उन्होंने जिंदगी जीने की सोची और ये उनकी सबसे बड़ी ताकत थी. एक आज़ाद भारत में ऐसे जज्बे वाली महिलाये कम है  और इसीलिये फूलन को अंतरास्ट्रीय मीडिया ने हाथो हाथ लिया क्योंकि उनके जीवन की कहानी में एक जज्बाती और सर उठाकर जीने वाली महिला की कहानी है.
लेकिन फूलन को क्या पता के उनके अपने ही लोग उनको 'दुधारू गया' की तरह इस्तेमाल करेंगे. रिहाई के बात फूलन मार्केट के प्रोडक्ट हो चुकी थी अतः पैसे भी काफी आये लेकिन राजनैतिक सोच के आभाव में फूलन यथास्थ्तिवादी ताकतों के हाथ में ही चली गए और फिर वही हुआ जिसका खतरा था. फूलन केवल निषाद समुदाय की महिला बनाकर रह गयी और उनकी मौत के बाद तो उनको उनके की लोगो ने पूरी तरह से भूला दिया.

फूलन दलित बहुजन महिला आन्दोलन के वास्ते बहुत कुच्छ कर सकती थी. उत्तर प्रदेश के अन्दर दलित अति पिच्च्दे समाज को इकठ्ठा करने और उसको नयी दिशा देने में वो निर्णायक भूमिका कर सकती थी लेकिन ऐसा तब संभव होता जब फूलन को दलित बहुजन आन्दोलन की जानकारी होती और उसके महापुरुषों के बारे में बताया जाता. उनके समाज में आज भी ब्राह्मणवादी परम्पराओं का बोलबाला है. अन्धविश्वाश आज भी बदस्तूर जारी है. दुखद बात यह है के फूलन उत्तर प्रदेश में बसपा विरोधी प्रोपगंडा का शिकार हुई. मैं यहाँ पर पार्टी की बात नहीं करना चाहता लेकिन केवल उसके सन्दर्भ ढूँढा रहा हूँ के फूलन एक सामाजिक आन्दोलन को मजबूत बना सकती थी लेक्किन सत्ता के गलियारों तक और सत्ता के चकाचौंध ने उत्तर प्रदेश में एक बहुत बड़ी क्रांति को रोक दिया.

आज फूलन अपने गाँव के लिए कुच्छ नहीं कर पाई. उसकी माँ और बहिन दो जून की रोटी के लिए मोहताज हैं और उनके नाम से वोट बटोरने वाली पार्टी और उनके राजनेताओ को यह पता भी नहीं के उनका परिवार किस हालत में रह रहा होगा. क्या यह फूलन के भोलेपन और ईमानदारी का सबूत नहीं के उन्होंने अपने लिए कुच्छ किया नहीं. लेकिन दुसरी तरफ यह भी सच है के उनके पास पैसे थे लेकिन उनके असमय मौत से उनकी सम्पति उनके परिवार तक नहीं पहुँच पाई. लोग बार बार यह सवाल पूछते हैं के फूलन की हत्या क्यों हुई? क्योंकि जो उनका हत्यारा माना जा रहा है वोह उनके घर पे आता जाता रहा है और ऐसे पहुँच कैसे हुई.

फूलन की बहिन रामकली ने मुलायम सिंह यादव को पिता कहा. फूलन भी मुलायम सिंह जी को पिता कहते थी. वोह आज भी उनके अहसानमंद है लेकिन दुखी भी के आज दो बार की संसद फूलन की माँ के पास सर छुपाने की जगह नहीं. एक छोटा सा टूटा फूटा सा घर है और खाने के लिए अब उनकी माँ काम नहीं कर सकती और न उनको कोई विधवा पेंसिओं है न ही गरीबे रेखा  का कार्ड. क्या ये शर्मनाक नहीं की आज हम समाजवादी पार्टी और उनकी सरकार से फूलन के परिवार के लिए तीन सौ रुपैया पेंसन और गरीबी रेखा कार्ड की बात कहें. रामकली भी बीमार है और उसका बेटा मानसिक रोक से ग्रस्त है. कुच्छ वर्ष पूर ट्रेन की छत पर यात्रा करते वक़्त उसका सर किसी वस्तु से टकरा गया और तब से उसकी स्थिथि ठीक नहीं लेकिन त्रासदी है के उसके ठीक से इलाज़ के लिए पैसे भी नहीं है. मुलायम सिंह जी यादव और उनकी समाजवादी पार्टी से अनुरोध है के वे फूलन के परिवार को ससम्मान जीवन जीने के लिए कुच्छ करे और अपनी उस सांसद को थोडा याद कर ले जिसके भरोशे उन्होंने एक ज़माने में मल्लाह-निषाद समुदाय में पैठ बनाने का प्रयास किया. 

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