Sunday 19 August 2012

 सबसे महान भारतीय कौन

विद्या भूषण रावत

आज एक चैनल ने अपने खेल का पटाक्षेप कर ही दिया. गाँधी के बाद सबसे बड़ा भारतीय कौन के जवाब में बाब साहेब आंबेडकर को सम्मानित करना उनकी मजबूरी थी. और अगर किसी ने कार्यक्रम देखा हो तो पता कर सकते हैं कैसे सारे लोग शोक संतप्त दिख रहे थे. मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे के भारत की जनता ने बाबा साहेब आंबेडकर को देश का महानतम व्यक्ति करार दिया है, गाँधी के बाद लेकिन इससे बड़ा फरेब हो नहीं सकता. हिंदुस्तान के मनुवादी कभी आंबेडकर को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जैसे के बाज़ार का नियम है यहाँ जिसके वोट ज्यादा हैं उसको रोक नहीं सकते. इसलिए बाब साहेब को ज्यादा वोट मिलने का मतलब साफ़ है है के ब्रह्मंवादियों को उनके ही खेल में हराने के लिए वोही तौर तरीके अपनाने पड़ेंगे. वैसे मेरा यह मानना है के राजदीप सरदेसाई या अमिताभ बच्चन के मानाने या न मानने से डॉ आंबेडकर का महत्व कम नहीं होता है. हम जैसे लोगो के लिए उनकी महत्ता हमेशा रहेगी क्योंकि उन्होंने लोगो के जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन किया है.

बहुत दुःख हुआ सहारा कार्यक्रम देख कर. किस तरह से हर एक व्यक्क्ति के बारे में बताने के लिए सबके पास बहुत कुच्छ था.. सचिन, लता, टाटा, अमिताभ, अटलजी, इंदिरागांधी, अब्दुल कलम  और नेहरु. सभी की विस्तार से चर्चा हुयी और इनकी महानता के चर्चे हुए लेकिन डॉ आंबेडकर के बारे में बताने और उनके जीवन मूल्यों के बारे में बताने के लिए राजदीप सरदेसाई को एक विश्श्ग्य नहीं मिला. आयोजको के चेहरे दुखी नज़र आ रहे थे. शायद पहली बार मार्केट की ताकतों को लगा होता के चुनाव के आलावा अब अन्य स्थानों पर भी अम्बेद्कर्वादीयों के प्रहार नज़र आयेंगे और उनको बचना मुश्किल होगा. 

आंबेडकर का महत्व भारत के आम जनमानस के जीवन में इतना अधिक है के वोह इंसानी आज़ादी के प्रश्नों से जुदा है. वोह हमारे जीवन को एक नए आयाम देते हैं. वोह किसी खाप पंचायत के नेता के तौर पर नहीं. मैं गाँधी को अपना रहनुमा नहीं मान सकता जब तक वोह दकियानूसी परम्परो, जातिवादी सोच और भारत के गाँव को बदलने का सपना नहीं बुनते. मुझे आंबेडकर में आशा की किरण दिखाई दी क्योंकि उन्होंने लोकतंत्र, व्यक्ति और बदलाव की बात की. दुनिया के अंदर एक सांस्कृतिक और राजनितिक बदलाव की बात के जो वोह अपने समय तो नहीं देख पाए लेकिन आज खुश हो रहे होंगे जब उनके मानने वाले अलग अलग क्षेत्रो में अपनी बलंदियों को छु रहे हैं. आज भारत के लोकतंत्र अगर मज़बूत है तो आंबेडकर के मानाने वालो का शुक्रिया अदा करना होगा जिन्होंने एक सेकुलर संविधान को अपना मूल धर्मं मन और संविधान चलने वालो के लाख बदनियतो के बावजूद उस पर भरोषा रखा. बाबा साहेब ने कहा था के ख़राब लोग एक बेहतरीन संविधान को भी ख़राब कर सकते हैं. 

एक सभ्य समाज के लोग यह बहस नहीं करते के महान कौन है. वोह ईमानदारी से इस बात को स्वीकार करते हैं के उनके जीवन एक व्यक्ति ने बदलाव लाया है. आंबेडकर की भारत को दें एक महान संविधान ही नहीं है अपितु भारत के करोडो कोगो को जीवन में एक नयी आशा और बदलाव का सन्देश था. उनलोगों को जिनके गाँधी या नेहरु ने भूख हड़ताल नहीं की और न ही अपने जीवन में कोई लड़ाई लड़ी.

इसलिए, अमिताभ या शबाना आज़मी को बाबा साहेब के नाम का महत्व समझना है तो हिन्दुओ को समझाना पड़ेगा और देखना पड़ेगा के क्यों देश के बहुसंख्यक समाज के लोग १४ अप्रैल, ६ दिसम्बर और दशहरे के दिन दिल्ली, मुंबई और नागपुर में भरी संख्या में इकठ्ठा होते है. यह भीड़ कोई पैसे से नहीं लाई जाती. यह भीड़ अपने सबसे बड़े व्यक्ति के लिए सम्मान के वास्ते आती है.. बाज़ारवाद  से सावधान रहना क्योंकि यह बड़े बड़े पूंजीपति और धन्ध्य लोगो को भी उन लोगो के साथ महान बताने पे तुला है जिन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान किया. फिलहाल, हम येही कह सकते हैं के देश के बहुसख्यक समुदाय के लिए आंबेडकर  का महत्व गाँधी से बहुत बड़ा है इसलिए हम बाज़ार के  इस तिकड़म को ख़ारिज करते है के  'गाँधी' के बाद बाबा साहेब सबसे बड़े भारतीय हैं.. बाबा साहेब सभी भारतियों के लिए सर्वोच्च हैं जिन्होंने संविधान, इंसानियत, बराबरी और भ्रतित्व को अपना उद्देश्य माना. गाँधी के जातिवादी ग्रामीण विचारो से केवल खप पंचायते और हिंदुत्ववादी ही मज़बूत हुए है   न की भारत का संविधान. इसलिए, एक मज़बूत, आधुनिक और प्रगतिशील भारत के लिए अम्बेडकरवाद ही २१वी सदी का विचार हो सकता है.


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