Friday 15 February 2013

सम्मान के लिए शुरू हुयी जंग




विद्या भूषण रावत 

हसीना की आँखों में भविष्य के सपने दिखाई दे रहे थे और मुझे उसके पूर्ण रंग रूप में भारत के लिए एक नयी मिसाल क्योंकि कई बार हम हमारे इर्द गिर्द बड़ी बड़ी बातो को छोटा समझकर छोड़ देते हैं . हसीना नट  समुदाय से आती हैं और यह समुदाय दलितो में भी स्वीकृत नहीं हो पाया है। पुराने समय में ब्रिटिश काल में नटो को आपराधिक जाती का दर्जा था यानी जिसके भी घर में चोरी हो नटो को जेल जाना पड़ता था। तब से लेकर अब तक कानूनों में परिवर्तन तो आये हैं लेकिन हमारी मानसिकता में बदलाव नहीं आये है और पुलिस अभी भी वोही रवैया अख्तियार करती है जो पहले था। लगभग 450 नट लोग हसीना और अन्य लोगो के नत्रेत्व में पडरौना के डी एम् के कार्यालय पर एकत्रित हुए और  अपनी मानगो के सिलसिले में एक ज्ञापन दिया . हमारी मानवीयकरण यात्रा के बीच में उनसे मुलाकात होना एक बेहतरीन अनुभव था जिसने यह बताया के जिस जाती को 'मांगता' कह कर रोज रोज अपमानित किया जाता है उसके पास इस देश को देने के लिए बहुत कुच्छ है। 

दरअसल नट एक घुमंतू जाती हैं और कबीलों के तरीके से रहते हैं लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं और उनके आश्रय के स्थान भी नहीं रहे। इसके आलावा वे भी चाहते हैं के उनके बच्चे आगे बढे और तरक्की करें इसलिए की अपमान और जिल्लत की जिंदगी को वे अलविदा कहना चाहते हैं।

ऐसा नहीं की उनको काम नहीं आता . मेहनत करने में कोई संकोच नहीं है और  बहुत से बच्चे मजदूरी भी करते हैं। गोदने की कला में यह माहिर हैं लेकिन अब शायद उतना पैसा नहीं मिल पाटा और जब शादियों का समय हो तो शायद सौ डे ड सौ रुपैया दिन का कम लेते हैं अन्यथा स्थिथि बहुत ख़राब है।

कुशीनगर जनपद के रवीन्द्रनगर गाँव में यह लोग करीब 100 परिवार रहते होंगे लेकिन एक के पास भी राशन का कार्ड नहीं है, न ही किसी के पास कोई आवास या नरेगा का कार्ड। उनके नाम से भी राशन के कार्ड हों भी तो उनके पास नहीं होते, यदि नरेगा के कार्ड हों भी तो प्रधान जी के घर पे होंगे। गाँव में उनकी औरतो को गनी नज़रो से देखा जाता हैं क्योंकि नट  जाती में पर्दा प्रथा नहीं है और आपस में वे लोग खुश भी रहते हैं। जिस सामंती खेत्र में सामंतवाद का असर हर समाज में रहा हो वहां नट अपनी खुली जीवन शैली से सबको एक नया सन्देश दे सकते है लकिन अगर समझने वालो को कोई तमीज हो तो न।

इतनी मुश्किल हालत में जिंदगी व्यतीत करने पर भी उनके चेहरे की मुस्कराहट लाखो डालर कमानों वालो के चेहरे के तनाव से ज्यादा अच्छी है। अपमानपूर्वक उनको मांगता कहा जाता है क्योंकि यह लोग भीख मांगकर गुजरात करते हैं लेकिन आजकल भीख भी नहीं मिलते और कम से कम इनकी महिलाओ को रोजाना अपमान का शिकार होना पड़ता है। 
मैंने हसीना से पूछा तुम कौन से धर्म को मानती हो। तो उसका कहना था सभी धर्मो को। उसका नाम हसीना जरुर है लेकिन वोह हिन्दुओ के रीती रिवाज़ पर भी चलते है और व्रत रखते है। जब ईद का मौका आता है तो सब लोग रोज़ा भी रखते हैं। मैंने पूछा, तुम्हारे पति का क्या नाम है। ' जमालु' और तुम्हारे बच्चो के क्या नाम हैं।। पिंकी, मनोज, आरती वर्षा इत्यादि। मैं थोडा और आश्चर्य में पड़ा क्योंकि इस देश में नाम और पहचान के नाम पर इतने खून खराबे होते हैं और यहाँ एक समुदाय है जिसकी जीवन शैली हम सबके लिए एक बहुत बेहतरीन उदहारण है के 'नाम से क्या  लेना'. हम तो सेकुलारिस्म को जीते हैं और केवल भाषणों में बोलते नहीं है। 

इसी विरोध प्रदर्शन में एक बुजुर्ग हबीब से मिलता हूँ ' आप किसे मानते हैं, मैं पूछता हूँ। ' जी हम तो राम को भी मानते हैं और रहीम को भी। ' मैं नवरात्र में व्रत भी रखता हूँ तो ईद के समय रोज भी। आपके पिता का क्या नाम है। जी' बाबु राम और बेटे का न्यूटन . मुझे तो बहुत ख़ुशी है के न्यूटन हो या लूटन, ऐसे लोग नहीं देखे जो जिंदगी को इस तरीके से जीते हो। आप अपने को मांगता क्यों कहते है भाई ब्राह्मण तो अंतररास्ट्रीय मांगता है लेकिन कभी अपने को मांगता नहीं कहता हमारी सरकार भी तो मांगती है लेकिन कोई उसे कभी भिखारी कहता है क्या। अब अपने को मांगता कहना बंद करो,  मैंने उन्हें समझाया। आरे भाई आप लोगो के पास तो दुनिया को देने के लिए बहुत कुच्छ है। लोग तो धर्मनिरपेक्षता का तगमा लगाये घूमते हैं और  आप लोग तो उसे जीते हैं असल जिंदगी में। भारत के लोगो के लिए तो नत मिसाल हैं। ऐसी मिसाल जो ढूंढे नहीं मिलेगी।

हसीना के अन्दर आत्मा विश्वास था। वोह हमारी यात्रा के अंत में लखनऊ आये और जल जंगल जमीन के आन्दोलन में शरीक हुयी है। उसे नहीं पता था के उसके जीवन में एक नयी क्रांति आने वाली है और उसके समाज के अन्दर बदलाव के हवा को तूफ़ान में बदलने के लिए उसको तैयार होना पड़ेगा . उत्तर-प्रदेश लैंड अलायन्स के अधिवेशन में हसीना को उपाध्यक्ष चुन गया। उसने मुझसे कहा वो इस लायक नहीं है। कैसे बोलेगी पढ़े लिखों के बीच लेकिन उसने जो कहाँ और जो जिया वोह हम सबके लिए जिंदगी का सबसे बड़ा सबक है। उसके पास दुनिया को देने लिए बहुत है और अब समय है हम नट  समाज का सम्मान करें उनकोसत्ता और संघर्ष में  सम्मान सहित भागीदारी देकर . ऐसे बहुत से समाज हैं जो बिलकुल हासिये में हैं और उन सभी को हमारे अन्दोलनो में इज्जत के साथ भागिदार बनाना पड़ेगा तभी छुआछूत जातिवाद और अंधविश्वास के विरुद्ध हमारी जंग कामयाब हो पाएगी। हमें यह भी जानना है के धर्मनिरपेक्षता हमारे समाज में बहार से नहीं आये अपितु पसमांदा तबके से आये जिसके जनक थे कबीर और जिसकी जीती जगती तस्वीर है नट समाज। आज इस समाज को हमारे प्यार और इज्जत की आवश्यकता है ताकि उनका भविष्य अच्चा हो और उनके बच्चे अपने बचपने को आज़ादी से जी सकें . 

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