Wednesday 20 July 2011



गीता के रहस्य को पहचानिए
  
विद्या भूषण रावत
 
 
कर्नाटक की भाजपा सरकार के निर्णय से हम सब को हैरानी नही होनी चाहिये जिसमे उन्होने गीता की पढाई स्कूलो में अनिवार्य कर दी है. राज्य के शिक्षा मंत्री ने यह भी कहा है कि जो लोग गीता नही पढ़ना चाहते उन्हें भारत मे रहने का हक नही है. हम सब जानते है कि हिन्दुत्व का मुख्य एजेण्डा देश में ब्राहम्णवादी वर्चस्व को मजबूत करना है और यह कार्य उसे भारतीय संस्कृति के नाम पर काम करना है. वह जानते हैं कि ऐसा करने से उन्हें देश के मध्य वर्ग का समर्थन तो मिलेगा ही, नैतिकता के दूसरे ठकेदारों का भी अन्दरूनी तौर पर समर्थन मिलेगा. भारत के कुछ सेक्युलरिस्टों ने  एक बार विश्व हिन्दू परिषद का मुकाबला करने के लिये कई स्थानों पर गीता बंटवायी. क्या हम हिन्दुत्व की घ्रणा का मुकाबला गीता या कुरान से कर पायेंगे? ये वर्चस्व की लडाई है जिसे वह राजनैतिक तरीके से पहले ही हार चुके हैं इसीलिए ये शक्तियां अब चोर दरवाजे से प्रयास कर  अपने एकाधिकारवाद को जमाए रखना चाहते हैं.

भाजपा की हर सरकार के एजेण्डा में हिन्दुत्व है जो उसका मूल बिन्दु है. भ्रष्टाचार और राष्ट्रवाद उसमें बीच बीच मे तड़के के तौर पर आते हैं. हमेशा दूसरों के भ्रष्टाचार पर बात करने वाला यह दल अपने मुख्यमंत्रियों के भ्रष्टाचार पर चुप है. अभी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के बेटे के विवाह में जिस बेशर्मी से खर्चा किया गया उससे ज्यादा शर्मनाक यह है कि इस प्रसंग पर हमारा मीडिया चुप रहा और देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करने वाले भी संदिग्ध रूप से चुप है. कुछ दिनों पहले इस मुख्यमंत्री की बेटी की शादी बिना किसी शोर शराबे के हो गयी क्योंकि उसने प्रेम विवाह किया था जिसे मुख्यमंत्री और उन्के परिवार ने स्वीकार नही किया और इसलिये यह विवाह चुपचाप सम्पन्न करा दिया गया जबकि बेटे के विवाह को राजशाही तरीके से मनाया गया.

हमें समझना होगा कि संघ और उसके आका भारत की संस्कृति के ठेकेदार बनकर ब्राहम्ण्वादी वर्चस्व को भारत मे कायम रखना चाहते हैं ताकि हमारे लोकतन्त्र के फ़लस्वरूप जो परिवर्तन आ रहे हैं उसको रोका जा सके. ऐसे परिवर्तन शिक्षा और सूचना के तन्त्रों और मनोरंजन के साधनों पर नियंत्रण करने से ही संभव है. आज कर्नाटक मे जो हुआ उसे कल्याण सिह ने उत्तर प्रदेश मे बहुत पहले कर दिखाया था जब उन्होंने वहाँ की पाठ्यपुस्तकों से कबीर को हटाने के आदेश दिये थे. आप सभी जानते हैं कबीर और रविदास के राम, तुलसी के दशरथ पुत्र नही हैं और हिन्दुत्व के लोगों के एजेण्डे में नही आ सकते.

कर्नातक के शिक्षामंत्री का कहना है कि जो गीता नही पढ़ सकते वो देश से निकल जायें क्योंकि वे भारत में पैदा हुए धर्म और विचारधारा की बात कर रहे हैं. उन्हें यह नही पता कि यह गीता का ज्ञान आततायी आर्यों की देन है और असुरो को हराने के वास्ते कृष्ण ने साम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाने की बात कही. गीता ने भारत में वर्ण व्यवस्था को मजबूत किया और जाति के नाम पर पूर्वाग्रहो को आगे बढाया. यह एक ऐसी पुस्तक है जिसने हिंसा को सही ठहराया और उसे सामाजिक स्वीकार्यता के कारण दिये.

यदि गीता का ज्ञान हमारे बच्चो को दिया जायेगा तो देश मे कोई न्यायपालिका काम नही कर पायेगी क्योंकि किसी भी अपराधी के अपराध को सिद्ध नही किया जा सकता. क्योंकि गीता में कहा गया है " नैनम च्ह्हिदन्ति शस्त्रानि नैन्म दहति पावकह, नैनम क्लेदियन्तअप न शोशयति मारुतह". इसका अभिप्राय यह कि आत्म अमर है, इसको न कोई मार सकता और न ही कोई आग इसको जला सकती और न ही कोई हवा इसको सुखा सकती है. साफ़ तौर पर यदि कोई अपराधी हत्या के अभियोग में किसी न्यायालय में यह बात गीता पर हाथ रखकर कह सकता है कि "जज साहेब, मैंने कोई हत्या नही की, मैंने तो केवल शरीर को मारा है, आत्मा तो अमर है वह तो मरती नहीं और ऐसा श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश देते समय स्वंय कहा है कि " हे अर्जुन तुम ये रिश्ते नातो को भूल जाओ क्योंकि तुम तो युद्ध मे इनके शरीर का नाश करोगे, इनकी आत्मा तो अमर और अज़र है.. तुम किसी की हत्या थोडे ही कर रहे हो. शरीर तो एक प्रकार से नये कपड़े की तरह है और अत्मा उसमें प्रवेश करती है".
ये बात समझना जरुरी है कि गीता के जरिये संघ परिवार फिर से देश मे सम्प्रदायिक द्वेष फैलाना चाहता है. वे जानते हैं कि मुसलमानों और इसाईयों के अलावा इसका विरोध नहीं होने वाला क्योंकि दलित और शूद्र  संगठनों के लिये ये कोई मुद्दा नही है और विशेषकर शूद्रों की ताकतवर जाति के हीरो कृष्ण है इसीलिये उसके कृत्यों को सही ठहराने वालों की एक बढी फ़ौज़ है. भाजपा के मंत्री ने साफ़ किया है कि गीता हमारे देश का मूल धर्मग्रन्थ है और इसीलिये  इसे हर नागरिक को पढना होगा.
संघ के चरित्र और चाल को समझने की आवश्यकता है क्योंकि वह बौद्ध, जैन और सिखों को ब्राहमण धर्म का हिस्सा मानते हैं और इसीलिये इनसे उन्हें कोई बहुत चनौती नही है. उनका मक्सद साफ़ है कि देशी विदेशी की बहस को हिन्दु-मुस्लमान और हिन्दु इसाई बहस मे बदल दो ताकि वो इन्हे दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर खुद बहुमत का दावा करे. दूसरी बात, दलित या पिछडा वर्ग धर्म परिवर्तन कर इसाई या मुसलमान न बने ताकी भारत की आबादी हिन्दु रहे और ब्राहमणद का वर्चस्व कायम रहे. इस साजिश को ध्यान से समझने की आज आवश्यकता है.

यह भी जरुरी है के शिक्षा के नाम पर देश मे कैसा माहौल खडा करने की कोशिश हो रही है. क्या एक धर्मनिर्पेक्ष देश के लिये जहाँ भिन्न भिन्न प्रकार की बोलियाँ, जु़बानें और मज़हब हों वहाँ एक विशेश प्रकार की पुस्तक पढायी जाये ताकि बच्चे ज़्यादा जातिवादी और हिसंक बन सके ? आज भारत को ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरुरत है जहाँ से हमारे बच्चे मानववादी ,तर्कवादी बनें और देश की प्रगति मे अपना योगदान दे सकें. गीता पढ़कर हम कभी एक सभ्य समाज नहीं बना पायेंगे.यह केवल ब्राह्मण्वादी व्यवस्था को ही आगे बढायेगा.

भारत सरकार से अनुरोध है कि यदि भारत को एकजुट रखना है तो धर्म को बिल्कुल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित रखे और सरकारी स्कूलों से धर्म की पढायी तत्काल बन्द कर दी जानी चाहिये. आज भारत के बच्चों को जरुरत है हमारी सदियो पुरानी कुरीतियो को छोड़कर नये लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को अपनाने की ताकि हमारा लोकतंत्र मजबूत हो और संस्कृति के नाम पर हमारे दिमागो और खान पान को नियंत्रित करने का प्रयास करने वाले लोग नेस्तेनाबूद हों. आज के भारत में दलित, आदिवासी, पिछड़ा और पसमान्दा अपनी भूमिका चाहते हैं, यह तबका इतिहास की पुनर्व्याख्या कर रहा है. मुसलमानों से पहले भारत के कामगार और आजीवक समाज हिन्दुत्व के इस एजेण्डे को नकारता है. आज धर्मग्रन्थों की आरती उतारनी की जरुरत नहीं अपितु उनको दफ़न करने की जरुरत है ताकि एक प्रबुद्ध भारत का निर्माण हो सके और ब्राहमणवादी साजिशों को खत्म किया जा सके.

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