Monday 25 February 2013

ख़ामोशी की साजिश




विद्या भूषण रावत 

बिहार को अक्सर क्रांतिकारियों की धरती कहा जाता है और पिछले दो दशको के राजनैतिक बदलाव को बिहार में सामाजिक क्रांति के बदलाव के रूप में बताया जाने लगा था. जिन्हें जातिगत अस्मिताओ से चिड़ है वे जय प्रकाश का नाम गुण कर अपने को 'बड़ा' साबित करने की कोशिश करते है। हकीकत यह है के बिहार के राजनैतिक सामाजिक बदलाव से जेपी का कुच्छ लेना देना नहि क्योंकि उनके बड़ी जातियों के भक्त अभी भी सामाजिक न्याय से बहुत डरते हैं और दूर भागते है और जेपी का नाम लेकर हिंदुत्व की शक्तियों का साथ देना उनकी विचारधारा की कमजोरी को दर्शाती है. 

बिहार में दलितों के हालत ख़राब हैं और सामाजिक न्याय के नाम पर शाशन करने वाली पार्टियों के लिए वे मात्र वोट बैंक से अधिक कुच्छ भी नहीं रहे. ऐसे में जब हर जाती का वोट महत्वपूर्ण है बूथ मैनेजमेंट करने वाली जातियों ओर लोगो की पहचान सभी पार्टियों को है और उनके खिलाफ कार्यवाही करना तो दूर रहा उनको अब सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिकाएं मिल रही है और यही कारण है के भूमिहारो की राजनैतिक ताकत अभी भी बनी हुयी है और रणबीर सेना [पर सरकार के हाथ भी नहीं लगते और दलितों पर उनका दबाब लगातार है. 

उत्तर प्रदेश के तुलना में बिहार अभी भी बहुत पिछड़ा है क्योंकि कम से कम उत्तर प्रदेश में दलित अस्मिता का संघर्ष बिहार की तुलना में ज्यादा मज़बूत और वैचारिक धरातल पर खड़ा है. बसपा के आने से उत्तर प्रदेश में दलितों के राजनैतिक ताकत बढ़ी लेकिन बिहार में रामविलास पासवान वो काम नहीं कर पाए जो मायावती की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में किया है।

ऐसा माना जाता है के पटना में कोई भी घटना घटे तो राजनैतिक दल और आम आदमी बहुत चिल्लाता है लेकिन अभी जो दलितों पे हिंसा है उस पर पटना और बिहार के सामाजिक न्याय के लोग खामोश क्यों हैं? पटना में एक हॉस्टल में दलित छात्रो की पिटाई होती है और हमारे नेतृत्व उस पर चुप रहते हैं और अखबारों में भी कोई खबर नहीं बनती .

चंचल पासवान एक होनहार लड़की थी और अपने घर के लिए  कुच्छ कम भी रही थी। पिछले वर्ष २१ अक्टूबर की रात्रि को जब चंचल अपनी बहिन के साथ घर की छत पे सो रही थी तो उस पर ४ लोगो ने हमला किया . यह लोग छत पर चढ़ गए और चंचल को पकड़ कर उसके ऊपर एसिड डालने लगे.  चंचल का शरीर खासकर उसका  चेहरा  बुरी तरह से झुलस गया और वो  दर्द में  कराह रही थी . उसके मम्मी पापा उसकी आवाज सुन कर छत पर आये और फिर देख तो अनिल और उसके साथी उसकी बहिन पर भी हमला करने वाले थे. चंचल के जीवन को ख़त्म करने के उद्देश्य से और उसको सबक सिखाने के लिए इन लोगो ने जो नीच और वहिसियाना हरकत की वो और ज्यादा शातिर और कायर है क्योंकि बिहार के न तो अख़बार और नहीं राजनैतिक दलों ने कोई सवाल उठाया। इस हमले में चंचल की बहिन भी घायल हो गयॆ. उन्नीस साला चंचल को उसके पिता शैलेन्द्र पासवान मेडिकल कॉलेज में ले गए जहाँ उसकी हालात गंभीर बनी हुयी है. इतने महीनो के बाद अब चंचल की स्थिथि सुधर रही है लेकिन गरीब माँ बाप के पास बेटी के इलाज़ के लिए पैसे नहीं है और अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम की धरा के तहत जो मुआवजा उन्हें मिला वोह २ लाख 4 2  हज़ार रुपैया था और आज की स्थितियों में चंचल के इलाज के लिए कम से कम ६-१० लाख रुपियों की जरुरत होती है. 

अभी कुछ दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का कहना था के जस्टिस मार्कंडेय काटजू उनके राज्य को बदनाम कर रहे हैं और मीडिया के बारे में झूठे बयां दे रहे है  लेकिन जब मैंने इस घटना के बारे में जानकारी लेने की कोशिश के तो मुझे गूगल सर्च में कोई खबर नहीं मिलि. थोडा सी जानकार एक दो ब्लोग्स में थी जो चेंज डॉट ओर्ग के अभियान के कारण से मिली थे. कितनी बड़ी बात है के एक अंतरास्ट्रीय एडवोकेसी अभियान के तहत हमें जानकारी मिलटी है लेकिन स्थानीय अख़बार चुप बैठे है। क्या बिहार के राजनैतिक सत्ताधारी पेड न्यूज़ के सरगना बन गए हैं के इस प्रकार की घटनाओं पर भी पूर्णतया सेंसरशिप लगी हुयी है. 

आखिर क्यों चंचल पासवान पर हुआ हमला खबर नहीं बनता जबकि उसके एक महीने बाद की घटना से एक अनाम मसीहा जन्म लेती है जिसे हम सभी नए कानूनों और बदलाव की बात करते है। इसको समझने के लिए हमारे देश की घटिया जातीय राजनीती और मीडिया के अन्दर बैठे दकियानूसी चापलूस और जातिवादी पत्रकार हैं और उनके काले कारनामो प् पर्दाफास करना जरुरी है ताकि जनता को उसका पता रहे. 

मुझे इस घटना की जानकारी केवल चेंज डॉट ओर्ग से मिली क्योंकि एक पेटीशन पर हस्ताक्षर करने को कहा गया लेकिन जब मैं घटना की तह में गया तो मुझे अफ़सोस हुआ के किस प्रकार से मीडिया अपने जातिगत और वर्ग चरित्र की रक्षा कर रहा है और इस कारण से घटनाओं को छुपा रहा है जो शर्मनाक है.  पहले ये देखे के चंचल के अनुसार हमलावर कौन थे.  इनके नाम हैं अनिल राय, घनश्याम राय, बदल राय और गुलशन राय। इसमें कोई शक नहीं है के इनके जातिगत हितो और उसकी ताकत को देखकर ही न तो पटना में राजनैतिक पहल हुयी और न ही मीडिया ने इस सवाल को उठाया . पुलिस ने तो अनिल राय को अभी माईनर साबित करने की कोशिश की है ताकि इस विभत्स घटनाक्रम में उसे कोई सजा न मिले और चंचल को भी कम मुआवजा मिले इसके लिए पटना पुलिस ने उसे नाबालिग दिखाया जबकि वो १ ९ वर्ष से ऊपर की थॆ. राजनीती की बिसात में सही और गलत का निर्णय जाति  की संख्या और ताकत निर्धारित करेगी इसलिए ब्रह्मदेव सिंह की हत्या के बाद सत्तारूढ़ दल के बहुत से बिधयको ने उसे 'गाँधी' की पदवी दी और किसान नेता बताया। बिहार के सामाजिक न्याय में लगता है भूमिहारो की भूमिका अब ज्यादा बढ़ गयी लगती है और इसलिए सभी राजनैतिक दलों और अखबारों में उनके शुभचिंतको ने खबर को दबाने और उसके जातिगत मतलब न निकले जाएँ इसका पूर्ण प्रयास किया है और शायद नितीश जी की सत्ता के रहते चंचल को न्याय मिलेगा यह भी अब शक के दायरे मैं है. इसमें कोई शक नहीं के अनिल राय चंचल को लगातार परेशान करता रहता था और आज भी उनका परिवार भय में जी रहा है और पुलिस और प्रशाशन की और से ऐसा कोई प्रयास नहीं हुआ के यह भय खत्म हो सके. 

आश्चर्य की बात यह है के बिहार में सबकी जुबान क्यों बंद है ? अगर नितीश ने अखबारों को नियंत्रण में ले लिया है तो क्या हुआ जो नितीश कुमार को गरियाते हैं उनको क्या हुआ. जो जातीय अस्मिता को लेकर हमेशा हंगामा करने के लिए उतावले रहते हैं वोह कहाँ है?  बिहार के क्रांतिकारियों की यह चुप्पी बहुत खतरनाक है. यह चुप्पी नितीश के पेड मीडिया की चुप्पी से ज्यादा खतरनाक है. उम्मीद है पटना के साथी इस मामले को आगे बढ़ाएंगे और इस मामले में आरोपित लोगो जेल की सलाखों के पीछे भिजवाएंगे ताकि चंचल और उस जैसी अन्य लड़कियों पर ऐसे जातिवादी महिला विरोधी गुंडे दोबारा हाथ न उठा सके।



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