Monday 12 November 2012

Revisiting Vivekananda and Ram



विवेकानंद और राम का पुनर्वालोकन 

विद्या भूषण रावत 

नितिन गडकरी की मुसेबतें कम होने का नाम नहीं ले रही। उनकी कंपनियों का धंधा मंदा चल रहा है और विवेकानंद और द़ाउड़ इब्राहीम के आई क्यू को बराबर  बताकर उन्होंने एक नयी बहस शुरू कर दी। ऐसे लग रहा था मानो गडकरी आई क्यू विशेषज्ञ हैं क्योंकि आई क्यू की खोज विवेकानंद के निधन के बहुत बाद हुयी है। दूसरी बात, जब आप बात कर रहे हो तो तुलना का अध्ययन कैसे हो और किससे हो यह भी तो समझ का विषय है। यदि दाउड़ इब्राहीम कोई दार्शनिक होता तो या समाज सुधारक होता और उनके विचारो का कोई मतभेद होता तो बात थी। या फिर विवेकानंद को कोई गंग होता और फिर दाउद से तुलना होती तो बात थी। 

अब प्रश्न यह नही के क्या हम विवेकानंद को मानते हैं या नहीं। भाजपा के तो शीर्ष पर विवेकानंद हमेशा रहे हैं और 'वेदों की और लौटो' और 'वेदान्तिक दिमाग' के जन्मदाता ने बहुत सी जगहों पर ब्राह्मणों और वर्ण  व्यवस्था को गरियाया भी है लेकिन उसका समाधान अंत में वेदांत और वेदों में घुसकर अपने बदलाव का सारा बेडा गर्क कर दिया। लोगो को उनका वेदान्तिक बुद्धि'तो पसंद आ गया लेकिन 'इस्लामिक शरीर ' को छोड़ दिया। याद रहे विवेकानंद ने कहा एक मज़बूत भारत के लिए वेदान्तिक दिमाग और इस्लअमिक शारीर की जरुरत है। यानी सफलता के लिए ब्राह्मण बुद्धि और इस्लाम  की तरह की निष्ठा बहुत जरुरी है। वैसे इस्लाम के बारे में विवाकनद के विचारो को उनकी पुस्तकों के प्रकाशकों ने चुपचाप साफ़ भी कर दिया क्योंकी आज के राजनैतिक परिपेक्ष्य में वोह नरेन्द्र मोदी जैसे घृणा के सरदारों के काम नहीं आयेंगे। 

गडकरी को माफ़ी मंगनी पड़ी लेकिन अब राम जेठमलानी ने नया राग अलापा के राम एक अच्छा पति नहीं था। और लक्ष्मण तो और भी ख़राब था जो अपनी भाभी की सुरक्षा नहीं कर पाया। संघ परिवार में हडकंप है क्योंकि उन्ह्होने तो राम की दूकान चलाई और आगे भी उसके नाम पर वोट लेना चाहते हैं। राम जेथ्मलाई का हक बनता है क्योंकि राम तो उनके आगे वैसे भी लगा है और उनको दुःख हो रहा होगा के यदि आज के ज़माने की बात होती तो जेठमलानी को बहुत बड़ा केस मिलता कोर्ट में लड़ने के लिए। उन्होंने इतने बड़े केस लडे हैं के अभी राम भक्त उनका कुछ  नहीं बिगड़ सकते क्योंकि इस देश में इतने राजनेता हैं जिनको कोर्ट में उनसे बहुत काम हैं और राम तो सबका बेडा पार करते हैं।

इसलिए एक बात पे मैं जेठमलानी के साथ नहीं हूँ हालाँकि जो उन्होंने राम के बारे में कहाँ वोह तो बिलकुल सत्य है और अगर सत्य नही भी है तो हमें उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आदर करना चाहिए लेकिन यदि यह केस आज हुआ होता तो जेठमलानी क्या करते। क्या वोह सीता का केस लड़ते और राम को जेल भिजवाते। सत्य बात यह है के सीता पर केस लड़ने के लिए पैसे भी नहीं होते और राम जेठमलानी को राम पहले ही अपनी पार्टी  में लेकर अपनी पैरवी करवाते . आज की हकीकत यही है। राम जेठमलानी उसी पार्टी की पैरवी कर रहे हैं जिसके पास सीता के अपमान का बदला लेने के लिए शब्द नही है और जो इन सड़ी गली परम्पराओं  को देश पर लाद कर असली मुद्दों से हमारा ध्यान हटाना चाहते हैं। आज भी हज़ारो सीतायें हमारे समाज में हैं जिन्हें हमारे समर्थन की जरुरत है और सामाजिक न्याय चाहिए और जिनके साथ अन्याय होने के बावजूद भी समाज उन्ही से उत्तर मांगता है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और देश के अन्य राज्यों पर महिलाओ पर अत्याचार जारी हैं और अत्याचारी समाज में  से  है और महिला को मुंह ढक के रहना पड़ता है। राम की महिमा का मंडान करने वाले पूरी राम सीता कथा से अनेकार्थ निकल सकते हैं और सोच सकते हैं के आज की सीता कहाँ है और क्या आज का समाज वोह सब नहीं कर रहा है जो राम ने सीता के साथ किया था लेकिन आज के कानून के हिसाब वोह अपराध है। जेठमलानी उस पार्टी में जो आज के कानून को नहीं मानती और जिसका आदर्श मनुस्मृति है इसलिए जेठमलानी सत्य तो कह रहे हैं लेकिन उन  जैसे लोगो पर कितना विश्वास करें यह सोचने की बात है।

No comments:

Post a Comment